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ब्राह्मी सुंदरी मुंड केवली थे (आदिनाथ भगवान की पुत्री)। उत्तम स्थिति का निर्मल चारित्र पालनकर केवलज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद 1000 वर्ष तक भरत क्षेत्र में विचरते रहे किन्तु एक भी जीव को उपदेश नहीं दिया। बाहुबली के पास केवलज्ञान से पूर्व गए थे। सिद्धों की वीर्य शक्ति
संसारी का वीर्य सदैव आत्मा के गुणों के रसास्वादन में गंभीरता, पुद्गल के गुणों को मनाने प्रशांतता, और मग्नता का आनंद,
दर्शन मोहनीय कर्म की सघन
आवृत्ति के लिए संवेदन झूठ है। आत्मा के गुणों को भोगने में निरंतर
कामानंदी। क्रियाशील-आत्मानंदी, सिद्धों का दान अक्षय है, दान देने से
गुण रुप, समृद्धि अनन्त है कम नहीं होता, लाभ अनंत है बिना इच्छा का, भोग अयत्न है, बिना परिश्रम, उपभोगथकान का अहसास नहीं करात, वीर्य अप्रयासी है।
आत्मा के भोग में एकान्तिक सुख है, पुद्गल के भोगों में एकान्तिक दुःख है, मोक्ष में शून्यता या निष्क्रियता का मानना घोर अज्ञानदशा है, मूर्खता है । पुद्गल में सुख नहीं, आत्मा में सुख है । यह अनुभवपूर्वक लिए गए निर्णय के बिना जीव को गुण स्थानक संभव ही नहीं, नित्य मोक्ष स्वरुप की भावना का चिंतन करने से अनंत गुणा कर्म निर्जरा होती है, मोक्ष तत्व का अपूर्व चिंतन निर्जरा का श्रेष्ठ साधन है, पुण्यानुबंधी पुण्य का हेतु है।
"शुद्ध चित्तंऋपोऽहं का जाप करना अप्रयासी वीर्य :- आत्मा सिद्ध दशा में भोग उपभोग किसका करेगी ?
सहभावी गुणों का, क्रमभावी गुण-विशुद्ध पर्याय का भोग आत्मा प्रत्येक समय में करती है । आत्मा के अंदर अपूर्व स्फूर्ति, थनगनाट, उत्साह आदि बिना प्रयास के सहज अनुभव होता है।
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