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शक्ति से दोनों समान हैं, परंतु केवलज्ञानियों ने साधना ............... नहीं, सहज स्वभाव से, लक्ष की अधीरता, अरिहंतों को नहीं होती, अपूर्णता अप्राकट्य के आभारी है - अरिहंत
सिद्ध कृतकृत्य नहीं
कृतकृत्य हैं अपूर्ण दशा में है, साधक है
सर्व कर्म क्षय कर लिए देहमय हैं इसलिए सांसारिक हैं अशरीरि है इसलिए संसारी नहीं है ___ बंधन सुख दुःख भी है
बंधन, सुख, दुःख नहीं है। पुण्यानुबंधि पुण्य की पराकाष्ठा सिद्धि-फल का बीज रुप है
फल के वेदक हैं विश्व के श्रेष्ठ उपकारक हैं।
उपकार से परे है। तीर्थंकर की लक्ष्मी सिद्ध पद में सिद्धपद की लक्ष्मी तीर्थंकर पद में समा जाती है
समाती नहीं है। सव्याबाध सुखी
अव्याबाध सुखी (मन, वचन, काया की पीड़ा संभव है।) श्री महावीर को छ: माह तक खून की दस्त (रक्तातीसर) हुई। मोहजन्य तीव्र तमन्ना - दुःख गर्भित नियाणा हे भगवन् ! दुःख में तेरी याद आती है, इसलिए दुःखी ही रखना। तात्विक धर्म को प्राप्त करो - सुख में भी धर्म याद आता ही है।
मुंड केवली :- सर्वज्ञ है परन्तु उपदेश देने का काम ही नहीं है। पांच समवाय (प्रकृति के 5 कारण) काल, स्वभाव, भवितव्यता, कर्म और पुरुषार्थ। इसके विरुद्ध जाने का केवली का स्वभाव ही नहीं, स्वतंत्र कोई लक्ष्य नहीं । कर्मानुसार पर्यायों में वर्तन करे, समुद्रघात द्वारा अंतिम कर्म क्षय कर मोक्ष चले जाते हैं। तीर्थंकर नाम कर्म का बंध नहीं होने से उपदेश नहीं देते।
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