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________________ GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOG विधेयात्मक स्वरुप : सुख की आत्मिक संवेदना, सुख की उत्पत्ति आत्मा से ही है। पुद्गल का अभाव - सुख की अनुभूति । औदयिक भाव में सुख- नींद, नशा, हठयोगी, खेचरी मुद्रा कहते हैं। संवेदना अंतर्मुखी होने पर सुख का अनुभव होता है, जो संवेदना क्षीण हो गई हो तो सुखानुभूति नहीं होती। जड़ के गुण धर्म की संवेदना में जड़ की आधीनता रहती है। आत्मा के गुणों का संवेदन औदयिक भाव से नहीं किन्तु क्षय, उपशम, क्षयोपशम भाव से होता है। दर्शन सप्तक : 4 अनंतानुबंधी + 3 दर्शन मोहनीय । आत्मा की 9 महाशक्तियाँ हैं । नो मैं 9 चैतन्य शक्तिया आत्मा में हैं । मोक्ष आंतरिक प्रवृत्तियों से परिपूर्ण है, खाली नहीं है। अनंतज्ञान = निरावृत दशा होने पर नि:सीम ज्ञान उत्पन्न होता है। अनंत दर्शन = निरावृत दशा होने पर नि:सीम दर्शन शक्ति उत्पन्न होती है। अनंत चारित्र = आत्म रमणता, चेतना गुण अन्य में जाने नहीं देती। अनंत विवेक = अच्छे-अच्छे स्वरुप का सतत ध्यान । अनंत दान = दान देने का अद्वितीय गुण स्वीकार कर अनंत लाभ प्राप्त करें। अनंत लाभ = स्वगुणों का दान अपनी आत्मा को तात्विकता से कौन करता है ? अनंत भोग - = आत्मा के वैभव का भोग-उपभोग। अनंत उपभोग अनंत वीर्य = जड़ में पुरुषार्थ का प्रयोजन नहीं रहता है । कर्मों पर संपूर्ण सत्ता तो केवली अवस्था से ही होती है। इसीलिए सच्चा साधक समवसरण जैसे बाह्य वैभव से आकृष्ट नहीं होते । उसको आंतरिक गणों की महानता ही आकर्षित करती है । (सूलसा सती) समवसरण देखने नहीं गई । सिद्ध भगवंत मोक्ष में ज्योति में ज्योति मिलती है उस प्रकार रहे हुए हैं। प्रत्येक आत्मा का व्यक्तित्व स्वतंत्र होता है। गुणों की समानता होती है। 50505050505050505050505000311900900505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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