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__ मोक्ष की अतात्विक इच्छा प्रकट स्वरुप अनार्य धर्म में देखने को मिलती है । ईसाई धर्म में क्षमा गुण उत्कृष्ट परंतु जीव गुणठाणा के बाहर होने से पुण्यबंध ही कराता है । जो एक ही बार मोक्ष की तात्विक जिज्ञासा प्रकट हो जाती है तो उसी समय से असंख्यात गुना अकाम निर्जरा होने रुप लाभ आत्मा को प्राप्त हो जाता है। ___ संसार का सुख दुःख रुप लगे वही जीव मोक्ष स्वरुप का श्रवण करने और उसकी जिज्ञासा करने योग्य बनता है । भौतिक सुख की इच्छा होना और इच्छा को अच्छा मानना इन दोनों के बीच बहुत अंतर है । सम्यग् दृष्टि जीव को भौतिक सुख की इच्छा हो तो भी अनासक्त रहता है।
* मोक्ष का स्वरुप 1. नकारात्मक और 2. हकारात्मक (विधेयात्मक) दुःख और सुख की सामग्री का अभाव (देह, इन्द्रिय, मन) पौद्गलिक और सुख की सामग्री का अभाव (रस, गंध, स्पर्श, शब्द रुप) जन्म का दुःख नहीं - इन्द्रिय साधन नहीं। मरण का दुःख नहीं - देह नहीं। वृद्धावस्था नहीं - मन नहीं। रोग का दुःख नहीं - अच्छा रस नहीं। आधि का दुःख नहीं - अच्छी गंध नहीं। व्याधि का दुःख नहीं - अच्छा स्पर्श नहीं। उपाधि का दुःख नहीं - अच्छे शब्द नहीं। वेदना का दुःख नहीं - अच्छा रुप नहीं। भय का दुःख नहीं - भोग सामग्री का संपूर्ण अभाव । दुःख नहीं, दुःख की सामग्री नहीं - रुचिकर लगता है। सुख नहीं, सुख की सामग्री नहीं - रुचिकर लगा ? जो लगे तो....
जीव के दर्शन मोहनीय कर्म का किंचित क्षयोपशम् हुआ है अर्थात् अंतर चक्षु खुलना प्रारंभ हो गए हैं।
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