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GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOG * अनंत काल से जीव को राग का असद् अभिनिवेश-असद् आग्रह है। * दान देते समय क्या भाव होता है ? खाली हो गए या कुछ प्राप्त किया ? * आत्मा को अनंतानंत काल से आग्रह असद् आग्रह बंध गया है । यह अगर न टूटे और
मन को शांत कर दो, कषायों को कमजोर कर दो, चित्त शुद्धि कर लो, तो भी यह सब 1
अंक के बिना 0 शून्य जैसा है। * रागद्वेष में कड़वाहट का अनुभव होना चाहिए, तो ही सहजता से राग टूट जाता है। * भगवान की आज्ञा अर्थात् क्या ? जो एकांत में सुखकारी होती है, संसार में सत्य निर्णय
लेने के लिए आवेग शून्य तटस्थ बनना ही पड़ता है। * आत्मा का श्रेष्ठ स्वभाव क्या है ? ज्ञान ।
गुण = आनंद और दोष = दुःख का समीकरण समझना है। * राग-द्वेष ऊपर से छोड़ते हो, भीतर से छूटता है ?
छोड़ी हुई वस्तु की चाह, आकर्षण ही बुरा लगना चाहिए, तो ही आत्म शुद्धि का अंश
प्राप्त हुआ समझा जाएगा। * V. Imp. THOUGHTFUL ANALYSIS:- दोष का मूल कर्म में, कर्मों का मूल
मोह में, मोह का मूल ग्रंथि में, ग्रंथि का मूल सहज राग, सहज राग का मूल संसार का
रस, कदाग्रह (हठाग्रह) है। * तत्व का संवेदन यानि क्या ? तत्व की अनुभूति अर्थात् तत्व का संवेदन । तत्व का
संवेदन प्रकट हो जाय ऐसा जीव ही आत्म शुद्धि के अधिकार वाला होता है । मोक्ष की सत्य क्रिया करने वाले के लिए प्रथम गुणस्थान कहा है, इसकी पहिचान है :
अपूर्वकरण, अपूर्व आलोचना। * मोक्ष जाने के लिए सकाम निर्जरा के अतिरिक्त विकल्प नहीं है, वैराग्य उसका प्रारंभिक
साधन है। * दान देते समय, प्रभु दर्शन करते समय अश्रु बिंदु गिरे, गुणों का बहुत संग्रह हो,
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