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GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OGOGOGOGOGOG किन्तु संसार की असारता का तत्व संवेदन का हो तो अभी चित्त शुद्धि हो गई लेकिन
आत्म शुद्धि आयी नहीं है। * तत्व संवेदना में क्या करना ? आंतरिक जागृति ! जो भाव जैसा है, उसकी वैसी ही
अनुभूति होना उसका नाम तत्व संवेदन । ध्यान में हैं और फोन आया चमड़ी पर छेद होता है, वेदना, अफसोस, भीतर में ध्यान नहीं है। जीवन में जैसे Analysis करते हैं वैसे तुम्हारे हृदय के भावों का विश्लेषण Analysis
करोगे तो उसमें से तत्व संवेदन प्रकट होगा और फिर समकित का मार्ग खुल जाएगा। * लेश्या और ध्यान के संबंध में लेश्या जीव की प्रकृति के साथ बंधी हुई है । शुभ ध्यान
आता है तो उपयोग मन शुद्ध हो जाता है और शुभ लेश्या आए तो लब्धि मन शुद्ध होता
है, इन दोनों से मन शुद्धि होती है। * शुभ ध्यान के बिना समता नहीं आती, शुभ लेश्या के बिना शुभ ध्यान नहीं आता ।
नास्तिक जो सरल प्रकृति का हो तो शुभ लेश्या अवश्य आ सकती है। शुभ ध्यान का तो
नास्तिक है इसलिए प्रश्न ही नहीं उठता। * स्वार्थी स्वभाव वाले की लेश्या अशुभ ही गिनी जाती है, कारण - प्रकृति ही स्वार्थ की
है, चाहे वो लीन होकर भक्ति करता दिखाई देता हो । * सभी धर्म करने का अंतिम फल तो आत्मा को शुभ ध्यान में स्थिर करना ही है । इसके ___ लिए शुभ लेश्या अनिवार्य है। * प्रत्येक अपेक्षा अशुभ भाव ही कहलाती है । मोहनीय कर्म मूल कारण है । शुभ लेश्या
प्राप्त करने के लिए चिंतन-मनन विचारों के द्वारा संशोधन का पुरुषार्थ जरुरी है। * जो जाना है उस सत् तत्व को पुन: पुन: चिंतन करना । भावित होने के लिए
Repeatition करो । एक ही बात को आत्मा में हर वक्त लाते रहो । परमात्मा एवं धर्म के अतिरिक्त किसी की शरण में नहीं जाना यह दृढ़ मन हो जाए, दृढ़ श्रद्धा के भाव संचित हो जाए तो ही भावित हुए कहा जाएगा।
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