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GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOG * कषाय 24 घंटे उकलते पानी के घड़े के समान धधकते रहते हैं। अज्ञान भाव - जो
देखा नहीं किन्तु पढ़ा या जाना हो वे भाव अज्ञात होते हुए भी वे राग लब्धिमन में संग्रहित होते रहते हैं । अविरति के 24 घंटों में कर्मबंध चालू रहता है।
संसार का नित्य सत्य
शुभाशुभ भावो से ही शांति - अशांति * संस्कार रुप भाव - लब्धिमन का चौथा विभाग : * अनंत काल की रुढ़ विशेषता, पूर्वजन्म के अनुभव रुप संस्कार अंकित हो गए हैं
आत्मा के पटल पर। * जीवायोनि 84 लाख ही है, मर्यादित है । भव भ्रमण अनंत काल का इसलिए प्रत्येक ___ योनि में गए बिना छुटकारा नहीं है। * जीव जन्म लेता है तब अनंत जन्मों के संस्कार भी साथ लेकर आता है। * धर्म का मूलभूत लक्ष्य आत्मा का परिवर्तन है। मानस परिवर्तन की कला = आत्मावलोकन । * अशुभ भाव, परिणाम, संस्कार में विकृति वह मिथ्यात्व है। * विवेक का अंधापन वह मिथ्यात्व। * संसार में रस दर्शन मोहनीय कर्म से पैदा होता है।
* चारित्र, मोह, कर्म, राग पैदा करते हैं। * चित्त शुद्धि का प्रथम सोपान :- आत्मा की अनंत शक्ति पर श्रद्धा। * सर्जन से प्रसन्न होते हैं परंतु सर्जक को कौन ध्यान में रखता है ? * जीव को एक बार समकित होने के बाद चारित्र मोहनीय या अन्य कोई कर्म आत्मा की
मोक्ष मार्ग की साधना नहीं रोक सकता । कर्म दिखाई नहीं देता । स्थूल, जड़ है वह तो दिखाई देता है, परन्तु सूक्ष्म की दुनिया, जड़ पुद्गल से कई गुना विशाल है।
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