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________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG * काम, विषय-मन की भूख है । अपेक्षा, अनुकूलता, अंदर की भूख है । लोभ-महाभुख है। 24 घंटे लावा रस के समान धधकती रहती है। * अपना मन Departmental Store जैसा है । एक-एक Section में इच्छाएँ सीमा पार से मिलती हैं । मन की भूख कब तक ? जब तक मोह परिणाम हो । मन को मारना, मन के संताप से मुक्ति, उसका नाम वीतरागता । देह-इन्द्रिय-मन से अतीत मोक्ष, यानि सुख की पराकाष्ठा। * टीवी देखने पर मन की भूख बढ़ती है । टीवी जलाती है । लब्धि मन की शुद्धता के लिए प्रथम मान्यता, फिर परिणति शुद्धि । * धर्म आंतरिक, परिवर्तन करना चाहता है, आंतरिक परिवर्तन में प्रकृति ही आएगी। __सामायिक, पूजा, प्रतिक्रमण, दान, दया, तप, त्याग इन सभी में मान्यता पश्चात् प्रकृति, परिणति साथ जोड़ लाना पड़ती है । प्रकृति में धर्म के साथ परिवर्तन लाना पड़ता है तभी धर्म आत्मसात हुआ कहा जाएगा। मोक्ष में अमनस्क योग है। इसका अर्थ आगे बढ़ते 'मन' का भी त्याग करना पड़ता है। अपनी वृत्तियों को जानो, पहिचानो, समझो । इन वृत्तियों पर अंकुश लगाना सीखो। धर्म के विकास के लिए यह एक बहुत मजबूत अंत्र है। * अमनस्क योग की सिद्धि-साधना का अंतिम योग। * वर्तमान में मन की मलिनता को निकालने के लिए प्रयत्न करना - अमनस्कता की दशा को जानना। * निकट की वस्तु मन है, उसमें ध्यान दीजिए। * लब्धिमन के 4 विभाग : 1. मान्यता, 2. परिणति, 3. रागद्वेष के अज्ञात भाव, 4. संस्कारात्मक भाव। * राग-द्वेष के असंख्य परिणाम, अज्ञात भाव : * राग अंदर प्रकट होकर सुलगता रहता है मात्र ऊपर से विचार का ढक्कन आ जाने से ऊपरी सतह पर नहीं आता। 909090900909090905090909090298909090909090905090900909090
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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