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एक तरफ देह में भूख-प्यास-थकान-गंदगी आदि दःखों की उत्पत्ति और संचय अनवरत चलता रहता है । दूसरी तरफ उसके Temporary Relief उपाय जैसी भोग की क्रिया जिससे सुख का आभास होता रहता है। इस जड़ जगत का वेध सत्य है, भौतिक सुख की प्रक्रिया के साथ यह अबाधित नियम है।
इन्द्रियों का स्वरुप * शरीर की भूख से ज्यादा हजार लाख गुना भूख इन्द्रियों की है । आंख, कान, नाक,
जीभ स्पर्शन की मांग कभी पूरी नहीं होती। * शरीर की भूख यदि सिगड़ी जैसी है तो इन्द्रियों की भूख भट्टा एवं बॉयलर के समान है।
इन्द्रियों की गंदगी भी कैसी ? * आंख में से सफेद मल, चमड़ी से पसीना, नाक में से श्लेष्म कोई भी अच्छी वस्तु इनके
सम्पर्क में लाते ही वे भी गंदी हो जाती है। * महाराजा, देवता, शालिभद्र जैसे सेठ, अनुत्तर देव सभी के सुख में यही 4 कारण ही हैं। ___भूख, प्यास, थकान, गंदगी, इन्द्रियों की भूख विकराल है। * मन का स्वरुप : जानने जैसा मुख्य । मन की भूख कल्पनातीत है । अच्छा खाकर पेट
में डालो तो तृप्ति होती है, किन्तु ‘स्वाद' का संग्रह करने की मन की भूख नित्य बनी
रहती है। कषाय मन की भूख के अलग-अलग प्रकार है। * मन सुलगती और दबी आग जैसा है। सुलगती अग्नि में से ज्वाला समान उपयोग मन
के कषायों का है । दबी अग्नि रुप लब्धिमन की परिणितियाँ हैं । जो-जो संस्कार अंदर
दबे पढ़े हैं वे दबी अग्नि जैसे हैं। * Masterkey जो आपको अहं में फुला सकती है। तुम्हारे से सब कुछ करवा सकती है। मन की भूख की तृप्ति के लिए जीव बैल के जैसा काम करने के लिए तैयार हो जाता है । आवाज घसी हुई (Scratchy) हो परंतु प्रशंसा के लिए हो तो मन तृप्त होता है, कान
तृप्त नहीं होते। 9090GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO90 29790GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGGC