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अपने भाग्य की परीक्षा करने के लिए सेठ राज दरबार में गया । राजा सभा में बैठे थे सेठ ने आव देखा न ताव राजा के सिंहासन के पास पहुंचे और जोर थप्पड़ मार दी, जिससे मुकुट नीचे गिर गया । सैनिकों (अंगरक्षकों) ने तलवारें खींच दी । सेठ की गरदन पर तलवार पहुंचे उसके पूर्व ही राजा की दृष्टि मुकुट पर पड़ी, उसमें जहरीला सांप दिख गया । राजा ने तत्काल हाथ उठाकर सैनिकों को रोका। अपनी जान बचाने की दौलत राजा ने सेठ को 5 गांव इनाम में दिए ।
अपने भाग्य पर किसी को ऐसा भरोसा है ? सुपात्र दान करना हो तो 100 के बदले 1000 दे सकतो हो ? ऐसा विश्वास है ?
‘पुण्य पर भरोसा हो तो ऐसा लाभ मिले' भाग्य को बनाने वाला पुरुषार्थ है । फल भोगने में भाग्य और कर्म को तोड़ने में पुरुषार्थ प्रधान है । धर्म प्रवृत्ति में पुरुषार्थ कभी छोड़ना नहीं, कभी नहीं । तीर्थंकर की बताई हुई प्रवृत्ति का जोश कभी ठंडा न हो ।
कुछ समय बाद सेठ का भाग्य अभी भी बलवान है । सेठ फिर राज दरबार में गया; राजा ने सम्मान दिया । सेठ ने राजा के पांव पकड़े और खींच कर सिंहासन से नीचे गिरा दिया । इतने में सिंहासन के पीछे से दिवाल गिरी खड्डा हो गया । राजा बच गया । सेठ को 10000 रूपये इनाम में दिए ।
वस्तुपाल - तेजपाल - सोने का चरु जंगल में गाड़ने के लिए गए, खड्डा खोदा तो उल्टा उन्हें चरु मिल गया । यह पुण्य का ही फल है ।
छ: महीने बाद सेठ फिर पंडित के पास गया । भाग्य का पूछा तो उसने कहा सेठ अभी भी आपके ग्रह बलवान हैं । सेठ गांव के द्वार में प्रवेश कर रहा था और अपने लवाजमे के साथ बाहर घूमने निकला था । सेठ को सामने मिला । सेठ ने जोर से धक्का दिया, राजा घोड़े से गिर गया, दांत में से खून निकलने लगा; इधर नगर का द्वार जीर्ण-क्षीर्ण हो रहा था, तत्काल गिर पड़ा। राजा आदि सभी बच गए।
सेठ को राजा ने आधा राज्य दे दिया। यहां प्रबल पुण्योदय का प्रभाव ही कहा जाएगा और क्या कह सकते हैं ? इस स्थान पर पुण्य न हो तो ?
सेठ के पास 66 करोड़ सोना मोहरे थीं; उसके तीन समान भाग कर दिए। एक भाग जमीन
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