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________________ आत्म तत्व विचार व्याख्याता : श्रीमद् विजय लक्ष्मीसूरीश्वरजी महाराज कर्म उदय का प्रभाव : मनुष्य के अपने स्वरुप को भुला देता है; भिखारी लाखों का मालिक बन जाता है; अशुभ कर्म के उदय होने पर व्यापार में लाभ नहीं होता, तेजी में मंदी आ जाती है; दुर्बुद्धि उत्पन्न होती है । सनतकुमार चक्रवर्ती को रोगों ने घेर लिया, हिटलर की तानाशाही अंत में बुरी दशा । इज्जत बचाने के लिए जहर पीना, कोर्ट में जाना आदि । सनातन नियम :- अच्छे का फल अच्छा, बुरे का फल बुरा, यह सनातन नियम है । शरीर के लिए जो पाप कर्म होते हैं वे विपाक सह जीव के साथ जाते हैं । शरीर यहीं रह जाता है । कर्म, दूसरे, तीसरे या आगे के भव में उदय में आते हैं तब फल बताते हैं । मृगापुत्र :- मृगावती रानी का पुत्र था। पूर्व भव में यह जीव 'अक्षादि राठौड़' नामक राजा था उसने मदांध होकर घने पाप कर्म किए, अनाचार का सेवन, जनता को झूठे-झूठे आरोप लगाकर दंडित किया, देव गुरु की निंदा की । इन पाप कर्मों के परिणाम स्वरुप मरकर नरक में गया । वहाँ से निकलकर मृगापुत्र बना । वह कैसा ? उसके हाथ -पावँ नहीं मात्र नरक चिन्ह मात्र थे, आंख की जगह सिर्फ गड्डे आंख नहीं, कान नहीं मात्र चिन्ह । मात्र मिट्टी के पिंड जैसा शरीर । उसको खिलाएँ - पिलाएँ कैसे किन्तु माँ की आत्मा दयामय, तरल खाद्य पदार्थ उसके शरीर पर डालती वह अंदर जाकर मवाद और पानी बनकर बाहर आता, मृगापुत्र का शरीर पिंड उसमें आलोट कर शरीर की चमड़ी से वह चूस लेता । शरीर से इतनी दुर्गंध आती थी उसके पास जाने वाला नाक पर कपड़ा ढंके बिना नहीं जा सकता था, देखकर रो पड़े या चिल्ला उठे । सम्यग् - दृष्टि आत्मा भी सुनकर कांप उठता । ऐसे निकाचित पाप कर्म उदय का परिणाम । प्रबल पुण्योदय हो तो उल्टा करते सीधा होते हैं । एक सेठ था; ' भविष्य जानने की इच्छा हुई; जोशी को कुंडली बताई, “सेठजी आपके सभी ग्रह अत्यन्त अच्छे हैं; आप उल्टा काम करोगे तो भी सही होगा । " 285
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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