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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OG झूठ बोलने का पाप फल - गूंगा, बोबड़ा, मुख का रोगी होता है । दान देने में यश कीर्ति की कामना हो तो दान का लाभ, दान का आनंद उड़ जाता है । कर्म का नियम क्रियाप्रतिक्रिया में है। अच्छे से अच्छा, बुरे से बुरा फल ये कर्म का अप्रतिबंधित शासन है। यह प्रकृति का नियम है - साधन और आने वाले सुसमय सद्उपयोग करके संघ सेवा आज ही कर लो तो आने वाले समय (भव) में इससे अधिक समय का योग अनुकूल आएगा। * परलोक की विशिष्ट धारणा :- परलोक अर्थात् अन्य लोक, अपने अतिरिक्त अन्य लोक जहां रहते हैं। दृश्यमान परलोक :- मनुष्यों के लिए पशु समाज और पशुओं के लिए मनुष्य समाज दूसरा परलोक - मनुष्य की संतति, इस प्रकार परलोक को सुधारने संतति का श्रेय विचारने योग्य । अंत में जीवन शक्ति के वास्तविक तत्व का यथार्थज्ञान ही उत्तम रोशनी है, जो मंगल मार्ग पर सभी को आगे बढ़ाती है। ___ कर्म पुद्गलों को ग्रहण करता है तब प्रकृति, स्थिति, प्रदेश और अनुभाव (रस) इन चारों का निर्माण हो ही जाता है। * प्रकृति से स्वभाव बंधता है । ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय आदि निश्चित होते हैं। * स्थिति से कर्म पुद्गल का जीव के साथ कहाँ तक संबंध रहेगा यह निश्चय होता है * प्रदेश से जीव के साथ कार्मिक पुद्गल स्कंध कितने बंधे हैं यह निश्चय होता है। * अनुभाव से तीव्र या मंद, मधुर या कठोर फल देने वाली शक्ति का बंध होता है। मोदक (लड्डु) के दृष्टांत से चारों स्वरूपों को समझा जा सकता है। प्रकृति बंध और प्रदेश बंध : 'योग' के कारण बंधाते हैं। स्थिति बंध और अनुभाव बंध : कषाय' के कारण बंधाते हैं। (अनुभाग या रस) : तीव्र-शुभ अशुभ, मंद-शुभ अशुभ। कषाय की तीव्रता हो और कर्म प्रवृत्ति शुभ या अशुभ हो उस समय स्थिति का अधिक बंध होता है । कषाय की मंदता हो तो स्थिति कम बंधती है। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 281 GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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