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________________ @GOOGOG©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG न्यायोपार्जित द्रव्य से धर्म करने से, धर्म की पवित्रता बनी रहती है । पूर्व कर्म के अनुसंधान में जगत की विचित्रताओं का हल हो सकता है । अविद्वान और अशिक्षित मातापिता की संतानें बहुत प्रकाण्ड विद्वान हो जाती है । सावधानी से चलने पर भी ऊपर से ईंटपत्थर गिरे तो पूर्व कर्म का प्रभाव । इस प्रकार की युक्तियों से पूर्वजन्म है यह सिद्ध हो सकता है । ऐसी ही प्रामाणिकता पुनर्जन्म है यह भी सिद्ध किया जा सकता है। ___ दुःखों का अंत ही नहीं आता (यह परिस्थिति) ऐसा जीव को कर्मवाद के प्रति दृढ़ श्रद्धा से निराश नहीं कर सकती और वह सत्कर्म में प्रयत्नशील रह सकता है । उसको मृत्यु का भय नहीं सताता । वह मृत्यु को दृढ़ता से देह परिवर्तन के अतिरिक्त कुछ नहीं मानता । आत्मा की नित्यता समझता है इसलिए दूसरे का बुरा करना वो अपना बुरा करने समान' समझता है। स्वयं आत्मवादी है । आत्मवादी जीव सभी को अपने जैसा ही मानता है इससे वह मैत्रीभाव से गर्भित जीव है, समभाव का पोषक है, किसी भी प्राणी के साथ विषयभाव नहीं रखता। आत्मा, कर्म (पुण्य, पाप), पुनर्जन्म, मोक्ष और परमात्मा । ये पंचक समझने की दृढ़ मान्यता जीव को आत्मवादी बनाती है। कर्म जड़ है किन्तु जीव की चेतना का विशिष्ट संसर्ग इसमें शक्ति उत्पन्न करता है । जड़ कर्म चेतना के संयोग के बिना कोई भी फल देने में समर्थ नहीं है । कर्म करो और फल मिले तो ठीक अथवा न मिले तो भी ठीक, यह इच्छा करने से कुछ नहीं होता। कर्मबंध' आत्मा में 'संस्कार' डालता ही है। इस प्रकार कर्म से प्रेरित जीव को कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। ईश्वर की प्रेरणा से फल का भोक्ता नहीं होता । भगवत् गीता, 5 अध्याय, श्लोक 14 में भी बताया है, ईश्वर कर्ता नहीं, कराता नहीं और न ही सृजन करता है । उसी प्रकार कर्म के देने में प्रेरणा नहीं देता। न कतृत्वं न कर्माणि, लोकस्य सृजति प्रभुः न कर्मफल संयोग स्वभावस्तु प्रवर्त्तते ॥ ७050505050505050505050505090280900900505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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