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________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG * पीछे के भव का आयु बंध चालू (वर्तमान) भव में ही होता है । ऐसा मोहनीय कर्म का प्रभाव रहता है तब तक चलता रहता है । इसी को भवभ्रमण कहते हैं। 12. जैन दर्शन में 'कर्म' अर्थात् क्या है उसकी समझ ? कर्म यानि काम करना ये एक क्रिया हुई, परन्तु जैन दर्शन में 'कर्म' ये एक द्रव्यभूत वस्तु है, इसको समझना भी बहुत जरूरी है । मन, वचन और काया की क्रिया ये 'योग' कहलाती है । इस क्रिया के कारण कर्म के पुद्गल आत्म की तरफ आकर्षित होते हैं । आत्मा को स्पर्श और कषाय (राग-द्वेष) के बल से आत्मा से चिपक जाते हैं। राग-द्वेष अनादि काल से जीव के साथ लगे हुए हैं। इसी कारण कर्म का आत्मा के साथ चिपक जाना बंध' कहलाता है और यही कर्मबन्ध का चक्र अनादिकाल से चल रहा है । यही चक्र है, संसार-संसार चक्र। कषाय मुक्ति :- किल मुक्ति रेव - कषायों से मुक्त होने में ही मुक्ति है - संसार के अनेक प्राणियों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है । विवेक, बुद्धि ये इसको मिले हुए हैं । इसका सदुपयोग करे तो सदाचरण, सन्मार्ग पर चलते हुए वृद्धिमय बनता है । विशिष्ट पुरुषार्थ के द्वारा पुराने कर्म दूर होते हैं और नए कर्म बंध भी क्षीण होते जाते हैं एवं मोक्ष का का मार्ग प्रशस्त होता है। मानसिक क्रिया से भी कर्मबन्ध होते ही हैं, किन्तु सदाचारी जीव को इससे भय नहीं होता । वह पुण्यकर्म का बंध एवं उच्च निर्जरा रुप पुण्य का बंध करता हुआ आत्म कल्याण की उपकारी होता जाता है। कर्म - कर्म के पुद्गल जीव पर, हवा में उड़ती धूल, जिस तरह चिकनी दीवाल पर चिपकती है उसी प्रकार कर्म पुद्गल भी चिपकते हैं । कषाय के कारण चिपकते हैं बंधते हैं। कषाय यदि नष्ट हो जाय तो कर्म 'योग' के कारण जीव पर कर्मरज आती है पर चिपकती नहीं। (अमूर्त जीव कर्म के योग के कारण मूर्त जैसा बन जाता है) जीव शरीर धारक है, सुख-दुःख, वासना, भव भ्रमण सभी तत्व जीव के हैं, ये संबंध अनादिकाल से है। ___ कर्म बंधन के बाद - जैसे मदिरा का नशा तुरंत उत्पन्न नहीं होता है। बाद में नशा चढ़ता है। उसी प्रकार कुछ समय व्यतीत होने के बाद कर्मबंध अपना फल बताता है। फल बताने के बाद भोगना ही पड़ता है। अंत में जीव से कर्म छूट जाता है। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 276 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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