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GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOG का प्रदेश बंध होता है।
प्रदेश बंध योग द्वारा होता है, रस बंध कषाय द्वारा, आश्रव को समझने से सद्आचरण, दुराचरण की समझ आती है।
11. आयुष्य : आयुष्य 4 प्रकार का होता है - मनुष्य, तिर्यंच, देव, नरक का आयु।
आयुष्य : चाबी वाली घड़ी की तरह है, दह रूप घड़ी - भय, शस्त्राघात, क्लेश, विष, वेदना, आत्महत्या आदि के कारण निर्धारित समय से पूर्व बिगड़ जाती है (खराब हो जाती है) तो बंद हो जाती है, उसी प्रकार मृत्यु-अकाल मरण का भोग बनती है।
उदाहरण :- लंबी रस्सी जल रही है और उसके घुटाल कर दिए तो शीघ्र जल जाएगी और गीले कपड़े को बीच में से पोला कर दो तो जल्दी सुख जाएगा । 1000 रुपये की गड्डी में से हमेशा 1 रुपया निकलता जाएग तो 1000 दिन तक चलेगा किन्तु 1 ही दिन में 1000 रुपये खर्च कर देंगे तो 1 ही दिन चलेगा।
ऐसा होने का कारण यह है कि पूर्व जन्म में आयुष्य कर्म का बंध ढीला होने से - निमित्त मिलते ही समय से पूर्व अकाल पूर्ण हो जाता है और गूढ कर्म बंध होते हैं तो अकाल पूर्ण नहीं होता। ये दो प्रकार से आयुबंध समझाया गया है।
1. अपवर्तनीय आयुष्य :- निमित्त के उपक्रम में शीघ्र भुगतान होता है; आयु का अपवर्तन होता है।
2. अनपवर्तनीय आयुष्य :- उपक्रम लगे या न लगे फिर भी नियत समय तक आयु का भुगतान होता है।
* जीव शाश्वत सनातन नित्य तत्व है, इसका जन्म या मरण नहीं होता है । सकर्मक स्वरुप में कोई भी योनि में स्थूल शरीर ग्रहण कर प्रकट होना वह जन्म और स्थूल शरीर का वियोग होना मृत्यु।
*जीव का आयुष्य काल की अपेक्षा से घट सकता है, परन्तु बढ़ता नहीं।
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