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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©GOGOGOG * चारित्र मोहनीय :- कषाय के उदय के साथ तीव्र अशुभ परिणाम के कारण चारित्र मोहनीय कर्म बंध होते हैं। * आयुष्य : महापरिग्रह, महाआरंभ, पंचेन्द्रिय घात, रौद्र परिणाम आदि से नरक का आयुष्य बंधता है, मायायुक्त प्रवृत्ति के दोष से तिर्यंच का आयु बंध होता है, अल्प आरंभ, अल्प परिग्रह, मृदुता-ऋजुता के गुणों से मनुष्य का आयु बंध होता है, संयम, मध्यम या रागयुक्त हो, तपस्वी रुप, बाल कक्षा हो उस अनुरूप देव आयु बंधता है। * नाम कर्म :- शुभ नाम कर्म बंध के कारण :- सरलता, मृदुता, सच्चाई, मेलमिलाप कराने का प्रयत्न, सौजन्य आदि द्वारा शुभ नाम कर्म बंध होते हैं। इसके विपरीत दुर्जनता धारण करे, कुटिलता, शठता, ठगी, धोखा, चुगली आदि के कारण अशुभ नाम कर्म बंधते हैं। * गौत्र कर्म - गुण ग्राहकता, निराभिमानता, विनय से उच्च गौत्र बंध होते हैं। परनिंदा आत्म प्रशंसा, अन्य के गुणों के छिपाना, निर्दोषता होने पर भी दोषों को बताना, जाति-कुल-मद का अभिमान से नीच गौत्र कर्म बंध होता है। ___ * अंतराय कर्म :- 5 प्रकार से - दान, भोग, उपभोग, लाभ, वीर्य, इनमें अंतराय करना या विघ्न डलवाना इससे अंतराय कर्म का बंध होता है। ___ * प्र.- जो कर्म प्रकृति के आश्रव हैं वे अन्य कर्म प्रकृति के बंधक हो सकते हैं या नहीं? ___ उत्तर : प्रकृति के क्रम से बताए हुए आश्रव प्रकृति के अनुभाव (रस) बंध में ही निमित्त बनते हैं, शास्त्र सिद्धांत के प्रमाण से सामान्य रूप में आयुष्य को छोड़कर सात कर्म प्रकृतियों का बंध एक साथ समय-समय पर होते हैं; वो प्रदेश बंध के लिए ही हैं। __ आश्रव रस बंध के आश्रित हैं, यह मुख्य बात है । जिस प्रवृत्ति को करने से मुख्यत: जिस प्रकृति का 'रसबंध' कराती है वो प्रकृति का आश्रव गिनी जाती है। आश्रव सेवन करते समय प्रमुख रुप से उस प्रकृति का बंध होता है, बाकी प्रकृतियों UJJJJJJJJJJJS 274 JUJJJJJJJJJJJ
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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