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विभाव दशा में जीव कर्म का कर्ता है । द्रव्यकर्म और भावक्रम परस्पर कार्यकारण भाव संबंध से जुड़े हुए हैं, जैसे बीज और अंकूर। ___10. कर्म पुद्गल आकर्षण के बाद बंधते हैं, पुद्गलों के आकर्षण का काम कौन करता है ? योग-मन-वचन-काया की क्रिया । इसलिए आश्रव' कहलाते हैं। बंध के हेतु मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय (योग)। योग को 'आश्रव' का हेतु कहा है और बंध' का हेतु भी है, ऊपर बताए हुए बंध के 4 हेतु + योग आश्रव के भी हेतु हैं।
अब कौन से कर्म कैसे काम करने से बंधते हैं, उसका विवरण देखिए।
* ज्ञानावरणीय कर्म बंधन के कारण :- ज्ञानी का अनादर, ज्ञानवान व्यक्ति का उनके प्रति प्रतिकूल आचरण, द्वेषभाव, कृतघ्न व्यवहार, ज्ञान की पुस्तकों के प्रति असद व्यवहार, विद्याभ्यास करते हुए को पढ़ने में विघ्न डालना, कलुषित भावना के (विरोधी हो तो) कारण दूसरे को ज्ञान के उपकरण नहीं देना, मिथ्या उपदेश आदि से ज्ञानावरणीय कर्म बंध होते हैं।
दर्शनावरणीय कर्मबन्ध के कारण :- श्रद्धा, श्रद्धावान, श्रद्धा के साधन आदि के साथ गलत व्यवहार (अनादर भाव) करना।
* सातावेदनीय कर्म बंध के कारण :- अनुकंपा सेवा, क्षमा, दया, दान, संयम के कारण साता वेदनीय कर्मबंध होता है, बाल तप से भी सातावेदनीय कर्म बंध होते हैं।
* असातावेदनीय कर्मबंध के कारण :- किसी को मारना (घात करना), शोक, संताप, दुःख देने से दुर्ध्यान से दूषित आत्महत्या करने से, शोक-संताप दुःखग्रस्त रहने से असातावेदनीय कर्म बंध होते हैं।
* दर्शन मोहनीय कर्म बंध के कारण :- असत् मार्ग का उपदेश, सद्मार्गी के प्रति अपशब्द बोलना, साधु-संत-सज्जन-कल्याण साधन के मार्ग का
अपमानजनक व्यवहार करने से दर्शन मोहनीय कर्म बंध होते हैं। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 273 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe