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________________ @GOOGOGOGOG@G©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOGOG के विरुद्ध उसके हित के लिए डाँटते ही है ? भोले-भाले प्राणी (मानव) को ठगने के लिए दान-पूजादि की क्रिया करवाने वाला पाप ही बाँधता है । कसौटी यथार्थ होना चाहिए । भाव शुभ या अशुभ हो तो फल भी वैसा ही मिलेगा । परंतु मूढ़ विचार युक्त मनुष्य की मूर्खतापूर्ण प्रवृत्ति शुभ परिणाम वाली होने के बाद भी पाप बंधक हो सकती है । विवेक बुद्धि आवश्यक । उपयोग में (अप्रमत्त भाव में) धर्म माना गया है। 8. साधारण मानव नासमझी के कारण ऐसा समझता है कि पाप-लोहे की बेड़ी जैसा है और पुण्य सोने की बेड़ी जैसा है तो पाप करो या पुण्य कर्म बंध तो होता ही है । सारी पंचायती छोड़ो, जरूरी प्रवृत्तियाँ करो, अन्य गपशप कुछ नहीं निवृत्त अकर्मण्य बनकर मोक्ष की प्रतीक्षा करना उसमें क्या गलत है ? बिना आलसी, प्रवृत्ति वाला जीवन 'नवरो नाई पाटला मुंडे' वाली स्थिति उत्पन्न करेगा। बाहर से निष्क्रिय और अंदर से चारों ओर घूमता रहता है । कर्म बंध से छूटने के लिए निष्क्रिय बनने वाला अहंभोगी होता है। ___ मन को शुभ प्रवृत्ति में निरंतर जोड़ने के बाद बाह्य प्रवृत्तियों पर ब्रेक लगा देना चाहिए । अशुभ से छूटने के लिए शुभ का आश्रय लेना चाहिए । इरादा (झोक) बदलने का है । अशुभ के प्रति का झोक (Inclination) जब तक नष्ट न हो तब तक शुभ प्रवृत्तियाँ त्याग नहीं हो सकती। शुभ के बंध से छूटने की प्रवृत्ति त्यागना जरूरी नहीं, प्रवृत्ति करने के भाव को शुभ में से शुद्ध रूप में बदलने की आवश्यकता है। प्रवृत्ति छोड़ने से छूटती नहीं है। स्वत: छूट जाती है। सत्प्रवृत्तियुक्त जीवन विकासमय बनता है। ___9. कर्म के दो अर्थ हैं :- 1. कोई काम, क्रिया या प्रवृत्ति, 2. जीव की क्रिया द्वारा ‘कर्मवर्गणा' के जो पुद्गल आकर्षित होकर चिपकते हैं। उसके बाद पुद्गलों को 'कर्म' कहने में आते हैं । जो किए जाएं वह कर्म । जीव बध्ध कार्मिक पुद्गल वह कर्म । ये द्रव्य कर्म हैं । उससे उत्पन्न राग-द्वेषात्मक परिणाम वह 'भावकर्म'। ७05050505050505050505050505027250509050505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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