________________
GG
जड़ता के दृष्टांत
आहार-विहार में बेध्यान: पुष्ट खुराक न ले, शक्ति हीन हो जाए। जुआ, सट्टा में पैसे बिगाड़े, आय से अधिक खर्च करे, परीक्षा में मेहनत ही न करे तो फैल होकर ही आएगा । डॉक्टर के पास जाकर दवाई न लें और भूत-प्रेत के चक्कर में बीमार पड़े ।
ये सभी दृष्टांत जड़ता को दर्शाते हैं; इसमें कर्म को दोष नहीं दे सकते ।
:
उद्यम पुरुषार्थ करते हुए इच्छित फल प्राप्ति हो जाए तो फूले नहीं और फल न मिलने पर निराश भी न हो । ऐसे करने से कर्म नियम का उल्लंघन कहलाता है ।
किसी पर आपत्ति आई है, अन्याय हो रहा है, उसको शीघ्र सहायता करना चाहिए, उस समय कर्मवाद का प्रवचन देने नहीं बैठा जाता है ।
प्रत्येक जीव एक दूसरे के सहयोग से ही संसार में जीवित है । परस्पर मानवीय प्रेम सहानुभूति द्वारा मिलजुल कर रहने में ही सुख-शांति है ।
कर्मवाद का कहना है कि अनिष्ट कर्म में कर्मोदय में फर्क लाना मनुष्य के हाथ में होता ही है । जीव स्वयं की क्रिया द्वारा कर्मबंध करता है और उसी प्रकार स्वयं की क्रिया द्वारा ही कर्म को तोड़ भी सकता है ।
पूर्व कर्म सभी अभेद्य नहीं होते हैं । 'निकाचित' कर्म भी श्रेणि तप द्वारा दूर किए जा सकते हैं । किन्तु उसमें उत्कृष्ट पवित्रता ( भाव ) और साधना की आवश्यकता है । (शत्रिंशिका)
विवेकबुद्धि का अभाव अंधश्रद्धा, गतानुगतिकता ( रूढ़िवाद), अंधानुकरण (देखादेखी) अज्ञानता, लोभ, लालच आदि अनिष्ट प्रमाद के कारण बाधक बनते हैं, इच्छित परिणाम भी इसी कारण नहीं मिलते ।
7. दान, पूजा, सेवा की : पुण्यबंध होगा, किसी को कष्ट हुआ, पाप बंध होगा पुण्य पाप का निर्णय करने की कसौटी बाह्य क्रिया नहीं है ।
दान-पूजन करने वाला पापोपार्जन भी कर लेता है और परोपकारी डॉक्टर शल्य क्रिया करता है, कष्ट प्राप्त होता है किन्तु साथ ही पुण्य उपार्जन करता है । माँ-बाप, पुत्र की इच्छा
9060 271