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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® की (अन्याय-अनीति) भयानकता-दुःखकारकता में जब पैदा होता है तब कर्मवाद में श्रद्धा हुई यह गिनाता है । (समझा जाता है) करे तेवूपामे, वावे तेवुलणे'। ___ * प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के कृत्यों का स्वयं जिम्मेदार है, जो होता है हो रहा है - वह मेरे कर्मों के उदय से हो रहा है - मयणासुंदरी । * ज्ञानी को रसयुक्त खान-पान देखकर आंखों में पानी आता है एवं अपने मुंह में पानी आता है । अनासक्ति प्राप्त करना पड़ेगी। संसार में रहते हुए जीवन में जो घटना घटती है उसके पीछे सामान्य रुप में पूर्व कर्म बल रहता है; कोई मारने आता है उसका प्रतिकार करो तो उसमें कोई वैर वृत्ति नहीं, स्वयं की रक्षा के लिए उचित कदम उठाने मे कर्मशास्त्र भी सहारा देता है । पुरुषार्थी बनो, प्रशस्त पुरुषार्थ पुरुषत्व है । इसमें नए कर्म बंध नहीं होते। ___5. भाग्यादेय अज्ञात है, पुरुषार्थ करना मानव कर्तव्य है । जमीन खोदने पर पानी होगा तो अवश्य मिलेगा। उद्यम करते रहो भाग्य होगा तो मिलेगा। सर्वोपरि सत्ता किसकी ? आत्मा की : इसको लक्ष्य में लेकर शक्ति अनुरुप पुरुषार्थ करना पड़ता है । अशुभ कर्म भुगतना करते समय उच्च समभाव रहे यही पौरुषता है । ऐसे समय मन को स्वस्थ कौन रख सकता है ? कर्मवाद को अच्छे से समझने वाला हो, तो ही नए कर्मबन्ध से बच सकता है। __ पूर्व जन्म में किए कर्म प्राय: इस जन्म में फलते हैं; उसी प्रकार इस जन्म में किए कर्म भी इसी जन्म में भी फलित होते हैं (भगवती सूत्र) 6. जीवन में रोग आता है पैसा जाता है, विपत्ति आती है आदि घटनाओं का मूल पूर्व कर्म हो सकता है और उस समय प्रयास करते हुए भी विपत्ति नहीं टलती तो दुर्ध्यान न करते हुए सहन करने का प्रयत्न करना चाहिए। पूर्व कर्म को दोष देकर कुछ भी पुरुषार्थ न करे वह प्रमादी है। ७050505050505050505050505050270900900505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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