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________________ १० कर्म पुद्गलों का प्रकार एक ही हैं। जीव पृथक-पृथक प्रत्येक जीवों के कषाय रुप परिणाम निमित्त बनते हैं और भिन्न-भिन्न रस - बंध कराते हैं । जैसे एक ही घास खाने वाले प्राणी-भैंस, बकरी, गाय अलग-अलग हैं किन्तु घास का परिणाम अलग-अलग । चिकना दूध (गाड़ा), पतला दूध, मंद प्रकृति दूध आदि । * कर्म की 10 अवस्थाएँ बंध, उद्वर्तना, अपवर्तना, सत्ता, उदय, उदीरणा, संक्रमण, उपशमन, निधत्ति, निकाचित । पूर्व जन्म - पुनर्जन्म :- जीव की विविध देह रुप धारण करने की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है । आत्मा का पहला जन्म यानि आदि - प्रारंभ जैसा माना जा सकता है । पूर्व जन्म का प्रभाव प्रत्यक्ष दिखाई देता है । एक माता की 4 संतानों में अंतर होता है, जैसे धनवान और सुखी - अनीति या अनाचार में व्यस्त दिखाई देते हैं तो यह पूर्व जन्म के कर्मों का प्रभाव होगा - यह माना जा सकता है । सावधानी से चलते हुए भी ऊपर से ईंट पत्थर गिरना - पूर्व कर्म । मूल, वर्तमान के जन्म में नहीं, पूर्व जन्म में है । वर्तमान, भविष्य के भवों का मूल है । कर्म का नियम, निश्चित और न्यायमय विश्वशासन है । आत्मा की नित्यता समझने वाला मानता है कि अन्य का बुरा करना स्वयं का बुरा करने जैसा है । आत्मा, कर्म (पुण्य पाप), पुनर्जन्म, मोक्ष और परमात्मा ये पंचक समझने लायक है। 1. प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के कृत्यों के लिए जिम्मेदार है, किन्तु समाज के सामुदायिक कार्यों के परिणाम भी समाज को, समाज के सभी व्यक्तियों को भोगना पड़ता है, भविष्य की पीढ़ी को भी भुगतान करना पड़ता है । 2. कर्मवाद का सनातन नियम :- करे तेवुं पावे अने वावे तेवुं लणे । (करे जैसा भरे, जैसा बोवे वैसा पावे) न चाहते हुए भी इस नियम की उपेक्षा होती है तब ही कर्मबंध होते हैं । 268
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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