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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® आत्मकल्याण रुप निर्जरा (सकाम) जीव के मोक्षाभिमुख होने के बाद ही होती है । सत्य मोक्षाभिमुखता सम्यग्दृष्टि की प्राप्ति से प्रारंभ होती है और उसके बाद मोक्ष साधना का विकास बढ़ते हुए 'जिन' अवस्था में पूर्ण होता है । उत्तरोत्तर परिणाम शुद्धि विशुद्धि की अधिकता की ओर में असंख्यात गुणी कर्म निर्जरा बढ़ती जाती है, 'जिन' अवस्था में पहुंचाने से पूर्व की जीव की 10 दशाएँ हैं (Interesting Steps) 1.मिथ्यात्व टला, सम्यग् दृष्टि प्रकट हुई। 2. देश विरति के लिए उपासक दशा। 3. सर्वविरति प्रकट होने पर वीरत दशा 4. 'अनंतानुबंधी' कषायों का विलय होने पर 'अवन्त वियोजक' दशा। 5. दर्शन मोह का क्षय करने के लिए विशुद्धि प्रकट हो तो दर्शन मोहक्षपक दशा। 6. चारित्र मोहनीय प्रकृति का उपशम चालू रहता है, वह उपशमक दशा । 7. यह उपशम पूर्ण होने पर उपशांत' दशा। 8. चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय चालू रहता है तो वह क्षपक' दशा 9. क्षय पूर्ण होने पर क्षीण मोह' दशा। 10. सर्वज्ञता प्रकट हो वह 'जिन' दशा। VERY IMPORTANT TO REMEMBER: याद रखें, सुख-दुःख का संपूर्ण आधार मनोवृत्ति पर है, सुख-दुःख की भावना का प्रवाह, मनोवृत्ति के विचित्र चक्कर के अनुरुप घूमता रहता हैं। आर्थिक मंदता की स्थिति में भी तात्विक (सत्यता) ज्ञान और उससे प्राप्त संतोष लक्ष्मी का जिसने संपादन किया वही सत्त्वशाली मानव स्वयं के मन या आत्माओं को स्वस्थ रख सकता है एवं प्रसन्नता को भी कम नहीं होने देता। 'मन साध्युं तेणे सघलु साध्यं यह बात पूर्ण सत्य है । * चारित्र मोहनीय कर्म की भयानकता समझिए । अनादिकाल से प्रवाहमान 70 क्रोडाकोड़ी सागरोपम की स्थिति वाला मदिरापान जैसा कर्म है। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 263 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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