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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® जितने पुदगलों की मलीनता दूर हो जाती है वे शुद्ध हो जाते हैं, उनको सम्यक्त्व मोहनीय कहते हैं । जो आधे- अधूरे शुद्ध होते हैं वे मिश्र और जो शुद्ध होते ही नहीं वे मिथ्यात्व मोहनीय पुंज के समान रहते हैं। इस प्रकार दर्शन मोहनीय के 3 पुंज हुए। ये 3 पुंज + 4 अनंतानुबंधी कषाय के उपशम से प्रकट होता है वह ‘उपशम' समकित होता है। दर्शन मोहनीय के 3 भेद (1) सम्यक्त्व मोहनीय, (2) मिश्र मोहनीय (3) मिथ्यात्व मोहनीय उपशम सम्यक्त्व का काल पूरा होते, (1) उदय में आता है तो निर्मल पुद्गल होने के कारण जीव क्षयोपशम सम्यक्त्वी बनता है (2) उदय होते मिश्र सम्यक्त्वी बनता है, (3) उदय में आने से फिर मिथ्यात्वी बनता है। * उपशम समकित में मिथ्यात्व या दर्शन मोहनीय के पुद्गलों का विपाकोदय अथवा प्रदेशोदय कोई भी उदय होता नहीं। * क्षयोपशम समकित में मिथ्यात्व मोहनीय का उदयगत पुद्गलों का क्षय एवं उदय में न आने वाले पुद्गलों का उपशम। विपाकोदय :- जो कर्म पुद्गलों को फल दे वह उदय । प्रदेशोदय :- जिन कर्म पुद्गलों के उदय से आत्मा पर प्रभाव पड़ता ही नहीं है। * चारित्र मोहनीय के 25 भेद चार कषाय - क्रोध, मान, माया, लोभ - इनके प्रत्येक के 4 भेद = 16+9 नौ कषाय। 1. अनंतानुबंधी कषाय :- मिथ्यात्व लाता है, 2. अप्रत्याख्यानावरण :- देश-विरति को रोकता है, 3. प्रत्याख्यानावरण :- सर्व विरति को रोके, 4. संज्वलन :- यथाख्यात चारित्र को रोके, वीतरागता को बाधित करे। सर्वकर्म क्षय होते मोक्ष की स्थिति प्रकट हो उसके पूर्व, अंशत: कर्मक्षय रुप निर्जरा बढ़ते जाना आवश्यक है। सर्वसंसारी आत्माओं में कर्म की निर्जरा का क्रम चालू ही रहता है, किन्तु 90GOGOGOGOGOGOGOG©®©®©®©®©®© 2629099@GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGO
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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