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सुख और दुःख का प्रत्यक्ष कर्म फल तुझे भी है, इसलिए कारण रुप । सत्ता कर्म का अनुमान हो सकता है । जैसे अंकूर रुप कार्य का कारण बीज होता है ।
Visible causes are corrupted. चंदन आदि सुख के हेतु हैं और सर्प, विष आदि दुःख के हेतु हैं, ये दृश्य कारणों को छोड़ अदृश्य कारण कर्म को मानने की क्या आवश्यकता किसलिए है ?
दृश्य कारण में व्यभिचार दिखाई देता है इसलिए अदृश्य कारण मानना अनिवार्य बन जाता है । वो इस प्रकार से - सुख-दुःख के दृश्य कारण समान रुप से होते हुए भी उनके कार्यों में तरतमता देखने में आती है । इसका जो कारण है वही कर्म है । जीवन का आद्य बाल शरीर वही कर्म कार्मण शरीर है जो देहांतपूर्वक है, क्योंकि वह इन्द्रियों से युक्त है । जैसे युवा 1 देह, बाल देहपूर्वक है।
अचेतन व्यक्ति द्वारा की हुई क्रिया का फल अवश्य प्राप्त होता है । जिस प्रकार खेती कार्य का फल धान्य निष्पति, उसी प्रकार, दानादि क्रिया का फल आगे जाकर सुख-दुःख रूप में उदय में आता है ।
मूर्त कर्म : कार्य के अस्तित्व से कारण की सिद्धि होती है, तो शरीर आदि कार्य मूर्त होने के कारण कर्म भी मूर्त ही होना चाहिए। जैसे परमाणु का कार्य घट है, मूर्त है, इसलिए परमाणु भी मूर्त है ।
* कर्म का मूर्तत्व सिद्ध करने वाले अन्य हेतु :
(1) कर्म मूर्त है कारण कि उसके साथ संबंध होने से सुख आदि का अनुभव होता है; जैसे कि भोजन । अमूर्त आकाश के साथ संबंध होने से सुख आदि का अनुभव नहीं होता ।
(2) कर्म मूर्त है, कारण कि उसके संबंध से वेदना का अनुभव होता है जैसे अग्नि ।
(3) कर्म मूर्त है, कारण कि उसमें बाह्य पदार्थों से बल का आधार होता है। जैसे घट आदि पदार्थों पर तेल आदि बाह्य वस्तु का विलेपन करने से बलाधान होता है । इसी प्रकार
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