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२७०७090909009009009090050७०७09090090909050७०७090७०७७०७०७ 3. कषाय -
* जीवन में उत्पन्न होने वाले अतदुरस्त कंपनें। * क्रोध, मान-अहंकार, माया-दंभ और लोभ-आसक्ति । * क्रोध - मंत्री ने स्कंदकसूरी एवं उनके 499 साधुओं को घाणी में पिल डाले थे। * मान - बर्तन में खटाई हो और दूध डाल दिया जाय तो फट जाता है उसी प्रकार गुणरुपी
दूध मान रुपी कषाय में नहीं टिक पाता है। * लोभ - सर्व विनाश का मूल है । जहां इच्छा उत्पन्न हुई वहां उसका पोषण करने के लिए
सभी कषाय उत्पन्न होते हैं, मन निरंतर दुर्ध्यान में रहता है। 4. योग - * मन, वचन, काया की प्रवृत्तियाँ * योग से कर्म का आश्रव, कर्म के आश्रव से बंध, बंध से कर्म का उदय, कर्म के उदय से
संसार । इसलिए संसार से मुक्ति प्राप्त करना है तो आश्रव का त्याग करना ही पड़ता है। "आगमिक व्याख्याओं” पुस्तक में से । __भगवान महावीर के 11 गणधरों को जो संशय थे उनको अपनी सर्वज्ञ लब्धि के द्वारा भगवान ने दूर किए।
(1) इन्द्रभूति-आत्मा का अस्तित्व, (2) अग्निभूति-कर्म का अस्तित्व, (3) वायुभूति-आत्मा और शरीर का भेद , (4) व्यक्त स्वामी : शून्यवाद, (5) सुधर्मास्वामी- इस लोक और परलोक की विचित्रताएँ (6) मंडिक स्वामी-बंध और मोक्ष, (7) मौर्य पुत्र- देवों का अस्तित्व, (8) अकंपित स्वामी-नरक का अस्तित्व, (9) अचल भ्राता-पुण्य और पाप, (10) मैतार्य स्वामी-परलोक का अस्तित्व, (11) प्रभास स्वामी-निर्वाण का अस्तित्व।
कर्म का अस्तित्व :- भगवान महावीर, अग्निभूति को समझाते हैं कि मैं कर्म रज को प्रत्यक्ष देख रहा हूँ, जबकि तुझे उसका प्रत्यक्ष दर्शन नहीं है, फिर भी अनुमान से तू भी उसकी सिद्धि कर सकता है।
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