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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® 11. 'मिच्छामि दुक्कड़म्' यह महावाक्य है ।सच्चा मिच्छामि दुक्कड़म देने की पूर्व शर्त है, ‘पापमय संसार के प्रति अरुचि-अभाव हो । 12. जिस भाव से पाप सेवन किया हो उसी प्रतिस्पर्धा भाव द्वारा पश्चाताप हो तो ही वह पाप बिना भोगे समाप्त हो जाता है। 13. देह, इन्द्रिय, मन, कर्म बांधता नहीं है । आत्मा स्वयं कर्म बांधती है । हाँ, इन्द्रियाँ शुभाशुभ कर्म बांधने का साधन बन सकती है । उदाहरण - चश्मा, आंख देखने का साधन है, परन्तु देखने वाली आत्मा स्वयं है। 14. शुभ प्रवृत्ति, शुभ आत्म परिणामपूर्वक करनी चाहिए । परन्तु अशुभ प्रवृत्ति करनी पड़ती है तो भी अशुभ आत्म परिणाम नहीं करना । अभिनव सेठ ने दान के परिणाम के बिना दान किया और लेश मात्र पुण्य का बंध नहीं किया । जीरण सेठ ने दान की प्रवृत्ति किए बिना ही श्रेष्ठ आत्म परिणाम द्वारा विवेकयुक्त उच्च पुण्य बांध लिया। 15. शुभाशुभ भाव कर्म का सर्जक है, शुद्ध भाव कर्म का विसर्जक है। 16. प्रशस्त कषाय - यानि नि:स्वार्थ भाव, अर्थात् स्व-पर के हित की बुद्धि से प्रकट हुआ कषाय। 17. मोक्ष में शुद्ध भाव साथ लेकर जाने का है - प्रथम शुद्ध भाव - तात्विक वैराग्य द्वितीय शुद्ध भाव - सम्यगदर्शन रूप विवेक तृतीय शुद्ध भाव - भाव विरति 18. चमत्कार के आकर्षण से प्रेरिक होकर चमत्कारी साधु के सान्निध्य वाला नियमा __मिथ्यादृष्टि है; भौतिकता का तीव्र प्रभाव है इसलिए। 19. कर्म की 3 अवस्थाएँ हैं; (1) बंध, (2) उदय, (3) सत्ता । वैदिक धर्म में इसे 1. क्रियामण कर्म, 2. प्रारब्ध कर्म, 3. संचित कर्म के रुप में पहचानते हैं। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 252 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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