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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® अनुबंध अर्थात् आत्मा की तासीर (Attitude) तत्व की रुचि या अरुचि जो मन में छुपी हुई हैं अध्यवसाय मन का विचार है, वचन और काया का व्यवहार होता है, आत्मा का तासीर अनुबंध का बंध करती है। मन, वचन, काया और आत्मा पृथक् है, इसलिए योग की प्रवृत्ति से आत्मा की तासीर अलग हो सकती है। मन, वचन, काया परमात्म भक्ति में लीन हो, परंतु आत्मा की तासीर संसार में आसक्त भी होती ही है ना । इसीलिए मन, वचन, काया तीनों अनुबंध के कारण कहे गए हैं। * भगवान महावीर ने त्रिशला माँ के गर्भ में रहे हुए प्रतिज्ञा की थी कि माता-पिता के जीवित रहते दीक्षा नहीं लूंगा । क्योंकि उनके रहते दीक्षा लेने पर माता-पिता के 'अनुबंध' अशुभ पड़ जायेंगे । वह उनकी दुर्गति का कारण हो जाएगा । अवधि ज्ञान का उपयोग देखा तो उनका अशुभ अनुबंध रुका दिया। ___ * हेय-उपादेय का विवेक अनुबंध की आधारशिला है । सम्यक्त्व प्राप्त जीव को हिंसा में भी हेय बुद्धि ही होती है । अनुबंध पुण्य का ही होता है, हिंसा होते हुए भी सबुद्धि काम कर जाती है। * अशुभ अनुबंध पड़ता है तो पाप की Link (परंपरा) प्रारंभ हो जाती है । गलत बुद्धि आती है । अविरति में सुख मिलता है Vicious Circle चलता है । इसलिए अशुभ अनुबंध को शिथिल करो । जिनाज्ञा स्वीकार कर दुर्बुद्धि को कमजोर कीजिए। * चौभंगी: 1. आत्मा का तासीर शुभ, मन, वचन, काया के विचार, शब्द-व्यवहार भी शुभ हो, इस समय बंध और अनुबंध पुण्य के बंधाते हैं और इसलिए पुण्यानुबंध पुण्य बंधता है ऐसा कहा जाता है। 2. तासीर अशुभ, योग अशुभ तो पापानुबंधी पाप बंध जाता है। 50505050505050505050505000243900900505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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