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________________ JJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJG 3. तासीर अशुभ-अनुबंध पाप का, योग पुण्यमय पापानुबंधी पुण्य । 4. तासीर शुभ-अनुबंध पुण्य का, योग-पापमय, पुण्यानुबंधी पाप। When you change the way you look at things. The things you look at chance. अपुनर्बंधक अवस्था : मोहनीय आदि कर्मों की उ. स्थिति फिर नहीं बांधने वाला जीव । * 4 प्रकार के कर्म : अपुनर्बंधक जीव पुण्यानुबंधी पुण्य का बंध करते हैं। पुण्यानुबंधी पुण्य तारक शालिभद्र सुख में अनासक्ति पापानुबंधी पाप मारक कालसौरिक कसाई दुःख में दीन पापानुबंधी पुण्य मारक मम्मण सेठ दुःख में दीन पुण्यानुबंधी पाप तारक पुणिया श्रावक सुख में लीन शक्कर पर बैठी मक्खी पुण्यानुबंधी पुण्य श्लेष्म पर बैठी मक्खी पापानुबंधी पाप मधु में बैठी हुई मक्खी पापानुबंधी पुण्य पत्थर पर बैठी हुई मक्खी पुण्यानुबंधी पाप। मेघकुमार का पूर्व भव हाथी का, मोक्ष का लक्ष्य नहीं था परन्तु नि:स्वार्थ भाव थे। दया थी। श्रेणिक राजा के पुत्र बने और महावीर प्रभु संयम के सारथी मिले । पुण्य के अनुबंध के कारण से निमित्त शुभ मिले और मोक्ष का लक्ष्य हो गया। तिर गए। भोग और धर्म की सामग्री देने वाला पुण्य प्राप्त करना है ? धर्म क्रिया से ही मिलता है। तारक पुण्य बांधना है अर्थात् पुण्यानुबंधी पुण्य का बंध करना है ? प्रवृत्ति अति शुद्ध हो तो मिल सकता है, लक्ष्य मोक्ष का होना चाहिए। भोग भोगे पर अनासक्त भाव से । Feelwhat 'it' feels. ७०७७०७000000000002445050905050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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