________________
JUJIGJJJJJJJJJJJJJJJJ हड्डी क्रेक कर देती है, असर जीवन भर सहना पड़ता है । तुम्हारी शक्ति हो तो अपने दृष्टिकोण से विचार करके मन को शांत कर लो तो कम से कम में अधिक कर्म खप जाएंगे
और नए कर्म नहीं बंधेगे । अनुबंध नहीं होगा। ___ शयन करने से पूर्व परिणाम, लेश्या, अध्यवसाय विशुद्ध करके शयन करो । आश्रव की क्रिया Natural Phenomenon (प्राकृतिक घटनाक्रम) है । जीव मात्र के लिए एक ही नियम है । Conviction is strength.
आश्रव में मानना सीख लो, जिन्दगी सुधरने लग जाएगी।
अकेले कर्म को कारण नहीं माना जा सकता। 5 कारण इकट्ठे होते हैं तक कार्य होता है। काल, स्वभाव, भवितव्यता (भाग्य) पूर्व कर्म और पुरुषार्थ। ___ संतोष कहाँ जरूरी है ? संसार में ! धर्म में संतोष से बैठना नहीं । नित्य धर्म करते रहो । ज्ञान की प्राप्ति के लिए ! ज्ञानी भगवंतों ने कहा है, बंधे हुए कर्म उदय आते समय नए कर्म बांधने की शक्ति होती है, उसी का नाम है 'अनुबंध'।
जीवन में दुःख आता है - पाप कर्म का उदय ; जीवन में सुख आता है - पुण्य कर्म का उदय ;
सामान्यत: दुःख अच्छा नहीं लगता, सुख बहुत ही अच्छा लगता है । इच्छा है दःख निवारण की और सुख प्राप्ति की।
मानव जीवन मिला है उसका वास्तविक मूल्य है, दुःख निवारण से विशेष दुर्जनता निवारण में बहुत अधिक प्रयास हो । पुरुषार्थ की प्रधानता होना चाहिए।
सुख प्राप्ति से अधिक सज्जनता की प्राप्ति में (सुख में अनासक्ति) है। दुःख नहीं हो और जीवन दुर्जनता से भरा हो तो? उसकी क्या कीमत ?
पूणिया श्रावक, संगम उर्फ शालिभद्र बाह्य रुप से सुखी नहीं थे, किन्तु जीवन सज्जनता से परिपूर्ण था।
प्रश्न - दुर्जनता को किस प्रकार दूर करना ?
उत्तर - दुर्जनता को लाने वाला कौन? उसका मूल है पाप कर्म का अनुबंध । सज्जनता को उत्पन्न करने वाला - पुण्य कर्म का अनुबंध ।
909090900909090905090909002420090909090905090900909090