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________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG कर्म से अधिक शक्तिशाली होती है । पुरुषार्थ की प्रबलता होने पर चारित्र मोहनीय कर्म को हटना पड़ता है। भोजन की थाल परोसी हुई है । उसे खाने के लिए व्यवस्थित बैठकर खाने का पुरुषार्थ करोगे तो उदरपूर्ति होगी। उसमें कोई रोकने वाला नहीं । पुरुषार्थ कमजोर होगा तो घर बैठे कोई नौकरी नहीं देगा। व्यापार के लिए पुरुषार्थ (उद्यम) करोगे तो ही पैसे मिलेंगे। दीक्षा लेने और पालन करने में ज्ञान नहीं वैराग्य चाहिए। शारीरिक बल नहीं, मानसिक बल चाहिए।धैर्यता चाहिए। एकासणा भी नहीं करने वाला मानसिक बल से मास क्षमण की तपस्या कर लेता है । बस ! इसी प्रकार से दीक्षा पालन के लिए व्रत पालन करने की धैर्यता चाहिए। भाव सहित दीक्षा उत्तम से भी उत्तम है । भाव से रहित भिखारी ने दीक्षा ली, किन्तु बाद में संयम की अति अनुमोदना के प्रभाव से संप्रति राजा हुआ। वेश से ली हुई दीक्षा भी मनुष्य को तार देती है। उपवास करते हैं तब 24 घंटे भाव एक-जैसे कहाँ रहते हैं ? इसलिए भाव कम ज्यादा हो सकते हैं फिरभी तारने वाला अनुष्ठान है। सुखी होना है ? आत्मा के निकट जाओ * आत्मा का विकास कैसे करना ? (इन्द्रिय पराजय शतक ग्रंथ में से विवेचन लिया है) मैं अवगुणी हूँया गुणवान इसके आधार पर आत्मा का विकास होता है। सुखी या दुःखी पापी या पुण्यशाली के आधार पर नहीं । दोषों के नाश और गुणों की प्राप्ति करने का प्रयत्न करने से विकास की साधना होती है । चरमावर्त काल में ही ऐसा बनता है । अचरमावर्त काल में कर्म बहुत बलवान होते हैं और पुरुषार्थ कमजोर होता है । चरमावर्त में पुरुषार्थ बलवान होता है जिससे कर्मों को हारना पड़ता है। धर्म आराधना, अचरमावर्त काल में भी इतने समय विराधना को रोक देती है। इसलिए धर्म आराधना सतत चालू रहना ही उत्तम है। पुण्य का बंध और पाप का नाश करती है । दुःख कम करती है। * (इन्द्रिय पराजय शतक ग्रंथ में से विवेचन लिया है) 509050509050909090509090050225909009050909050509090909050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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