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________________ OUJOJI JOGGING सामायिक, प्रतिक्रमण, वीस स्थानक आदि तप, जाप आदि इसके बेरोमीटर नही । आंतरिक परिणति, राग द्वेष के भाव, आत्मा का झोक (Attitude) आदि उसके लक्षण हैं। बाहर से मान-सम्मान प्राप्त करने वाला जीव अंदर से उसकी स्पर्शना नहीं करे ऐसा हो सकता है। गलत प्रवृत्ति बाह्य हो और आत्मा अंदर से रोती हो ऐसा बनाव बने। स्थूल भाषा में जिसको संसार ही अच्छा लगता है, उसको मोक्ष अच्छा नहीं लगता। उस जीव ने अभी तक चरमावर्त में प्रवेश नहीं किया । जिसकी आत्मा का आंतरिक झोंक Trend के प्रशस्त भाव विकसित होते हैं तो चरमावर्त में प्रवेश किया हुआ हो सकता है । धर्म भी अच्छा लगे, पाप भी अच्छा लगे, मोक्ष भी, संसार भी अच्छा लगे, होटल भी और आयंबिल भी अच्छा लगता है । ऐसी प्रवृत्ति-वृत्ति वाला जीव, स्थूल भाषा में ज्ञानी जब समझाते हैं - तब कहते हैं, चरमावर्ती जीव होना चाहिए । मोक्ष, धर्म, अनुष्ठान, तप, क्रिया आदि अच्छी ही नहीं लगे, ऐसा नहीं होता। क्या बात है ? मेरा इतना अधिक संसार खत्म हो गया । एक ही आवर्त बाकी है ? तो थोड़ा और पुरुषार्थ अधिक करुंताकि मोक्ष जल्दी मिल जाए। ऐसे भावविभोर होना चाहिए। तेजपाल की पत्नी अनुपमा देवी महाविदेह में जन्म लिया, दीक्षा ली और केवलीज्ञानी के रूप में विचरण कर रहे हैं। आयुष पूर्ण करके मोक्ष जाएंगे । गजब की गति । गुरु हेमचन्द्राचार्य के बहुत भव होते है । उनके संसारी शिष्य कुमारपाल 3 भव करके मोक्ष जाएंगे। सभी के लिए सभी हो सकता है । अपने अंतर के भावों को शुद्ध निर्मल रखना चाहिए। * दीक्षा : दीक्षा देने वाला या उदय में लाने वाला कोई कर्म है ही नहीं । दीक्षा पुरुषार्थ से प्राप्त होती है । दीक्षा लेते हुए उसको रोकने वाला कर्म है । प्रबल पुरुषार्थ के द्वारा उसे दूर किया जा सकता है । उसको रोकने वाला कर्मका नाम है, चारित्र मोहनीय कर्म । चेतन की शक्ति जड़ ७05050505050505050505050505022450509050505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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