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________________ अवसर्पिणी काल में प्रथम मरुदेवी माता मोक्ष के सद्भागी बने, 1000 वर्ष तक ऋषभ को याद करके आंसू बहाती रही । चंदनबाला ने महावीर को आंसू के प्रभाव से वापिस लौटा कर बुलाया, केवलज्ञान रोते-रोते होता है, हंसते-हंसते नहीं । रोने की भी साधना करनी पड़ती है । करुणा में, अनुमोदना में, पश्चाताप में अरे ! प्रभु के विरह में आंसू गिरना ही प्रभु को हृदय में बसाना है। ..... अर्णिका पुत्र के रक्त बिन्दु नदी के अप्काय जीवों की हिंसा करते देख कर आंसू टपक पड़े, केवलज्ञान हो गया ... मोक्ष चले गए । घनघोर वर्षा होती है तो धान्य उत्पन्न होता है, जिनवाणी की अमृत वर्षा से गुण प्रकट होते हैं । भगवान के पांच कल्याणक की आराधना करना चाहिए ? कैसे ? च्यवनकल्याणक होने के बाद भगवान के मोक्ष के अतिरिक्त सभी गतियों के द्वार बंद हो जाते हैं । जन्म कल्याणक अर्थात् गर्भ में आने के द्वार जो खुले थे वो सदा के लिए बंद हो गए । दीक्षा कल्याणक यानि गृहस्थाश्रम के द्वार सदा के लिए बंद हो गए । केवलज्ञान कल्याणक अर्थात् छद्म अवस्था के द्वार सदा के लिए बंद हो गए । मोक्ष कल्याणक होने के बाद संसार में आने का द्वार सदा के लिये बंद । अपने को यदि ये सभी द्वार बंद करना है तो ये पंच कल्याणकों की भावविभोर होकर आराधना करनी चाहिए । दीपावली अर्थात् महावीर स्वामी का मोक्ष कल्याणक । उसकी आराधना - मिठाई खाना, फटाके फोड़ना नहीं किन्तु छट्ठ (दो उपवास), पौषध जाप, देव वंदन, प्रवचन श्रवण आदि करना । मोक्ष जाने के पहले जीवन का एक ही आवर्त - कुंडालिया बाकी रहता है तब वह चरमावर्त काल (अंतिम कुंडालिया) में प्रवेश कहलाता है । तभी वह भव्य आत्मा चरमावर्ती कहलाती है । ( एक कुंडालिया = 1 पुद्गल परावर्त काल), उसमें अनंत भव निकलते हैं । हमने अनंत पुद्गल परावर्तन में भ्रमण किया है । अत: हम चरमावर्त काल में प्रवेश कर चुके हैं ? 223
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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