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@GOG©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OG * भव्य
- मोक्ष पद प्राप्त कर सकता है। * सच्चा साधू
- मोक्ष पद प्राप्त कर सकता है। * द्रव्य लींगि साधु नौवे ग्रैवेयक तक। * श्रावक-श्राविका - बारहवें देवलोक तक। * तिर्यंच
- आठवे देवलोक तक। * समकिती श्रावक - बारहवें देवलोक से ऊपर भी जा सकता है। * मिथ्यात्वी अभव्य आत्मा - वेशधारी साधु बनकर नौवे ग्रैवेयक तक जाता है। साधु जीवन की सिद्धि, शक्ति अजब गजब की होती है।
साधुवेश से जीवदया का पालन, गुरुसेवा, ब्रह्मचर्य, सहज रूप से पालन हो सकते हैं। मन: पर्यवज्ञान साधु को ही प्राप्त होता है।
'धम्मं रक्खई वेसो', वेश धर्म की रक्षा करता है, देव साधु को वंदन करते हैं, संसार के रंगीन सुंदर वस्त्रों को त्यागकर संयम श्रृंगार रूप साधु वेश की चाह रहती है।
* सस्नेही प्यारा रे संयम कब ही मिले ? * क्यारे बनीश हूँ साचो रे संत ? * लेवा जेवूना लीधुं में संयम चारित्र आ भवमां ? * छोड़वा जेवो छोड़यो नहीं खारो संसार में आ भवमां।
साचा छे वीतराग, साची छे एनी वाणी,
आधार छ आज्ञा बाकी धूल धाणी । वीतराग ने कहा वही सत्य है, उनकी श्रद्धा ही समकित है, समकित ही मोक्ष का आवश्यक उपाय है । श्रद्धा के लिए चाहिए, मार्दव और आर्जव आदि गुण एवं गुणानुराग।
आध्यात्मिक जगत का भिखारी जिसका हृदय कोमल नहीं, जिसकी आंखों में करूणा, अनुमोदना या पश्चाताप के आंसू न हो, ऐसा अरबपति भी भिखारी है । जो भौतिक रूप से गरीब है, परंतु करुणा, अनुमोदना, पश्चाताप के आंसू जिसकी आंखों में हो वह आध्यात्मिक जगत का श्रीमंत है। 9@G©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 222 90GOOGOOGOGOGOG@GOOGOGOD