________________
®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG
सर्वप्रथम सभी आत्माएँ अव्यवहार राशि की निगोद में होती है । जाति भव्य आत्माएँ कभी बाहर नहीं आती हैं । भव्य आत्मा और अभव्य आत्मा बाहर आती हैं परन्तु दोनों की राह (रास्ते) अलग होती है। __ अभव्य गोल आकार आवर्त (O) में भ्रमण करती रहती है । भव्य की यात्रा के गोलाकार का आकार क्रमश: बड़ा होता जाता है और अंत में मोक्ष तक पहुँच जाता है।
जैन शासन में पाया के 6 सिद्धांत है 1. आत्मा है, 2. आत्मा परिणामी (शरीर से पृथक) नित्य है । 3. आत्मा कर्म की कर्ता है, 4. आत्मा कर्म की भोक्ता है । 5. आत्मा का मोक्ष है, 6. मोक्ष के उपाय भी हैं।
अभव्य आत्मा प्रथम के 4 सिद्धांत तो फिर भी मानती है, किन्तु 5वाँ और 6वाँ सिद्धांत तो मानती ही नहीं है । स्वयं दूसरे को मोक्ष के विषय में समझाते हैं, मोक्ष के उपाय बताते हैं। स्वयं द्रव्य से दीक्षा लेते हैं । (ऋद्धि, सिद्धि और स्वर्ग सुख के लिये) नव ग्रैवेयक तक पहुँच जाते हैं । परन्तु मोक्ष नहीं मानते या चाहते ही नहीं हैं।
भव्य कभी अभव्य नहीं होता है और अभव्य कभी भव्य नहीं होता है । अभव्य आत्माएँ चौथा अनंत प्रमाण है, किन्तु उसमें के सात अभव्य प्रचलित है।
साधुवेश, संयम का श्रृंगार पहला धर्म आचार है, ज्ञान नहीं । क्रिया के प्रति रुचि और आदर होना चाहिए। क्रिया रुचि वाली जीव शुक्ल पाक्षिक होता है, भव्य होता है, जो ऐसी क्रिया आदि में आनंद का अनुभव करता है । एक पुद्गल परिवर्तन काल से ज्यादा समय में नहीं रहता । वह उस पहले ही मोक्ष चला जाता है।
सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध आदि के प्रति अहोभाव रक्खो। * कौन सा जीव कहाँ तक जा सकता है ? * जातिभव्य - अव्यवहार राशि से बाहर नहीं निकल सकता * अभव्य
- ग्रैवेयक देवलोक तक जा सकता है।
GOGOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 221 90GOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®e