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पालक के द्वारा नमुचि ने सभी साधुओं को घाणी में डालकर मारना प्रारंभ किया (आचार्य के 500 शिष्य थे) स्कंदक सूरि ज्ञानवान थे, उन्होंने सभी साधुओं को अंतिम आराधना करवाई। “शरीर और आत्मा अलग है, शरीर घाणी में पिला रहा है, आत्मा नहीं पिलाती, आत्मा कभी नष्ट नहीं होती, शरीर नाशवान है।” इन भावों से पालक के प्रति दुर्भाव नहीं होता । 499 साधु गुरु आज्ञा में रहकर बिना दुर्भाव के मोक्ष को प्राप्त हो गए। अंतिम छोटा बाल मुनि गुरु का प्रिय शिष्य था । पालक से कहा पहले मेरे को पिल दे उसके बाद बाल मुनि को लेना । मैं उसको पिलते हुए नहीं देख सकता । किन्तु पालक अभव्य था, इसलिए उसने ऐसा नहीं किया। पहले बालमुनि को घाणी में डाला । इस कारण स्कंदक सूरि को पालक के प्रति दुर्भाव (क्रोध) उत्पन्न हुआ और उनकी मोक्ष मार्ग में जाने के प्रति रोक लग गई ।
5. “उदायी राजा की जो हत्या कर दे उसको आधा राज्य मिलेगा " ऐसी घोषणा सुनकर एक अभव्य व्यक्ति तैयार हुआ । 'उदायी' अकेला कहाँ मिलेगा ? पर्व तिथि को पौषध करता है । इसलिए पौषधशाला में जाने के लिए जैन साधु का सहारा लेना पड़ता है । उदायी राजा की हत्या करने के लिए गुरु का विनय किया। जैन मुनि से दीक्षा ग्रहण किया। गुरु ने उसका नाम विनयरत्न मुनि रखा । रजोहरण (ओघा) में छूरी छुपाकर रखता था । पौषध करवाने के लिए गुरु पौषधशाला में ले गए । आधी रात को उदय राजा की मेन नस काट डाली । गुरु को मालूम पड़ी । जिन शासन की हिलना न हो इसलिए गुरु ने अपने हाथ से अपनी नस काट डाली और प्राणों की आहुति दे दी ।
प्रात:काल जब लोग पौषधशाला में गए गुरु को और राजा को मरा हुआ देखकर कहने लगे - ‘विनयरत्न गलत था जो इसने राजा को तो मारा ही लेकिन गुरु को भी मार डाला ।' जैन धर्म की निंदा होने से बच गई ।
6. अंगारमर्दक : - 500 साधु के अभव्य गुरु थे ।
7. संगमदेव - महावीर स्वामी को एक रात में 20 उपसर्ग किए। उससे भी संतुष्टि नहीं 6 महीने तक भगवान को शुद्ध आहार नहीं मिलने दिया। जहां भी भगवान आहार के लिए जाते वहां आहार अशुद्ध कर देता । फिर भी प्रभु के मुख मंडल पर प्रसन्नता ऐसी की ऐसी ही रही और संगम के प्रति वीर प्रभु को दया आ गई एवं नयनों में दो आंसू छलक पड़े ।
संपूर्ण विश्व को तिराने की भावना वाले प्रभु इस (संगम) के संसार में निमित्त बन गए ।
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