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7. अभव्य प्रचलित हैं :
1. कपिला, 2. कालसौरिक, 3-4. दो पालक, 5-6 दो साधु - विनयरत्न एवं अंगारमर्दक और 7. संगम देव ।
1. कपिला :- श्रेणिक राजा की मुख्य दासी थी । साधु को दान (सुपात्रदान ) नहीं दे सकती थी । श्रेणिक ने जबरन दान देने बैठाया व हाथ पर चम्मच (चाटू) बांध दिया तो दान देती जाती और कहती जाती - मैं दान नहीं दे रही हूँ राजा का चम्मच दान दे रहा है ।
भव्य समकित प्राप्त कर लेता है तो मोक्ष जरूर जाता है । सिर्फ भव्य होने से ही मोक्ष I मिल जाता है ऐसा कोई नियम नहीं है ।
आचार : प्रथमो धर्म :- पहला धर्म ज्ञान नहीं, पहला धर्म आचार है ।
2. कालसौरिक कसाई 500 पाड़ा मारना बंद कर दें तो श्रेणिक तेरी नरक टल जाएगी, भगवान महावीर ने कहा । श्रेणिक ने कालसौरिक को खाली कुएं में उतार दिया कि अब पाड़े नहीं मारेगा। लेकिन वहाँ भी कल्पना के ( शरीर का मेल उतार कर पाड़े का आकार बनाया) पाड़े मारे, 500 पाड़े मारे ।
3-4 दो पालक :- श्रीकृष्ण का पुत्र प्रथम पालक था । एक समय श्रीकृष्ण ने शांब और पालक को कहा :- तुम दोनों में से जो भी प्रात: काल (कल) नेमिनाथ भगवान को प्रथम वंदन करेगा उसको मैं मेरा श्रेष्ठ घोड़ा पुरस्कार रूप में दूंगा ।
दूसरे दिन प्रात: अंधेरे में ही पालक दौड़ता हुआ गया और नेमिनाथ भगवान को वंदन करी । शांब ने विचार किया - अंधेरे में चलने में जीव-जंतु की रक्षा नहीं हो सकती । जयणा का ध्यान रखकर कर उसने घर बैठे ही भाव से प्रभु को वंदन किया ।
सूर्योदय के बाद कृष्णजी भगवान को वंदन करने गए तब पूछा कि प्रथम वंदन किसने किया ? प्रभु ने शांब की भाव वंदना को उत्तम और प्रथम बताई । पालक की सिर्फ द्रव्य वंदना थी ।
जया में मोक्ष प्राप्ति लक्ष्य है । इसलिए जयणा में धर्म है। शांब नहीं गया उसमें जीव हिंसा नहीं करने का उसका उपयोग ही धर्म था ।
दूसरा पालक मुनिसुव्रत स्वामी के शासन काल में हुआ -
स्कंदक सूरिजी आचार्य को नमुचि ने उद्यान में चारों तरफ से घेर लिया। अपने सेवक
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