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________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG हमारी आत्मा का स्वरूप ये हो कि मन को मोक्ष रूचिकर लगे, संसार की प्रवृत्ति अरुचिकर लगे । मोक्ष से संबंधित सामग्री अच्छी लगती है। संसार नहीं । सर्वप्रथम भगवान से मिलन, उसके बाद दुनिया की प्रवृत्तियाँ। श्रीपालकुमार की मयणासुंदरी के साथ शादी होने के बाद उसी रात्रि में श्रीपालजी ने मयणा से पूछा - "कल प्रात: क्या करेंगे?' तो उसके उत्तर में मयणा ने यह नहीं कहा कि - पहले वैद्यराज के पास जाकर कोढ़ रोग के निवारण का उपाय करेंगे या मामा के यहाँ जाकर आश्रय लेंगे अथवा बहिन के घर जाकर रहेंगे । नहीं ! मयणा ने क्या उत्तर दिया - “कल प्रात:काल सर्वप्रथम भगवान आदिनाथ के दर्शन वंदन करेंगे।" मयणा-श्रीपाल के हृदय में प्रभु बसे हुए थे - इसलिए सबसे पहले भगवान का ध्यान ही उनके नयनों में था, और हमारे ? भगवान और गुरु का नम्बर आखरी में। अर्धपुद्गल में प्रवेश करने के लिए :- प्रथम नम्बर देव, गुरु और धर्म के गुणों के प्रति आकर्षण (राग) और संसार के प्रति निरागता उत्पन्न करना आवश्यक है। जल कमलवत् = अनासक्ति - यह अंतर्हृदय से विचार करने योग्य है, पाप करने वाला पापी ही होगा, ऐसा नहीं होता। वेद मोहनीय कर्म के तीव्र उदय (निकाचित कर्म) वालासत्यकी विद्याधर समकित धारी था; ऐसा भगवान महावीर ने कहा था, अदृश्य रूप में शील भंग करता था, परन्तु अंदर से बहत पश्चाताप होता । हृदय उस कार्य से अत्यन्त व्यथित होता था। निरंतर रोता रहता था। वह जीव मोक्ष में जाने वाला था। काल की परिपक्वता के आधार पर जीव चरमावर्त में प्रवेश करता है। आत्मा का विकास करवाने में आधार क्या है ? 1. दुःखी है या सुखी ? 2. पापी है या पुण्यशाली ? 3. दोषी है या गुणवान ! आत्मा को दोष दूर करना और गुणों को प्राप्त करने के लिए प्रबल पुरुषार्थ करना आवश्यक है। सुःख-दुःख, पाप-पुण्य की चिंता किए बिना ! चरमावर्त काल में ही दोष का नाश और गुण की प्राप्ति हो सकती है। अचरमावर्त काल में कर्म बलवान, पुरुषार्थ निर्बल हो जाता है और चरमावर्तकाल में 9@G@G©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 215 9@GOGOGOG©®©®©®©®©®©®©®©®©®©
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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