SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG चरमावर्तकाल में प्रवेश होने के बाद जीव को धर्म एवं मोक्ष से संबंधित सभी बातें अच्छी (रूचिकर) लगने लगती हैं। ऐसा सुखद अनुभव करने वाले प्राणी के हृदय में उल्लास, उमंग प्रकट हो जाता है, मन में एक ही भाव चलते रहते हैं - बस ! अब तो विशेष साधना करूँ, पुरुषार्थ करूं और जल्दी मोक्ष प्राप्त करूँ। अर्ध चरम आवर्तकाल में आत्मा का प्रवेश हुआ है या नहीं, यह अपने स्वयं के हृदय को टटोल कर देखना है। बाहर से साधु जीवन में होते हुए भी अंदर से कुछ अलग ही हो सकता है। उसी प्रकार से बाहर से संसारी रूप में दिखाई देते हुए भी अंदर से आत्मा बड़ी प्रशस्त भाव में रह सकती है। इसलिए - No judgementonothers! सेठ तेजपाल की पत्नी अनुपमा देवी महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर चारित्र लिया और केवलज्ञानी के रूप में विचरण कर रहे हैं। आयु पूर्ण कर मोक्ष जाएँगे। ___ अनुपमा के भव में दीक्षा नहीं ली थी किन्तु मन के परिणाम उत्कृष्टी होने से दूसरे भव में ही मोक्ष के अधिकारी बन गए। संसारी शिष्य कुमारपाल राजा के सिर्फ 3 भव ही बताएँ हैं। सभी के लिए सभी कार्य हो सकते हैं । जैसे - बाह्य रूप से गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी कुर्मा पुत्र अंतर्भावना की उत्कृष्टता से उच्च श्रेणी को स्पर्श करते हुए केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। केवली के रूप में 6 माह तक घर में रहकर माता-पिता की सेवा की । क्योंकि - केवलज्ञान की किसी को जानकारी नहीं हुई (न होने दी)। अचरमावर्त में संसार के क्रियाकलाप अच्छे लगते हैं । मोक्ष अच्छा नहीं लगता। चरमावर्त में संसार भी अच्छा लगता है और मोक्ष भी। अर्ध चरमावर्त में संसार में रहना किंचित भी अच्छा नहीं लगता । मोक्ष ही अच्छा लगता है । गुरुदेव का साथ अच्छा लगता है । पत्नी यदि साथ भी रहती है तो भी उसके साथ रहना अच्छा नहीं मानता है। नियति परिपक्व हो गई तो अव्यवहार राशि में से बाहर निकल कर व्यवहार राशि में जीव आ जाता है । काल परिपक्व हुआ तो अचरमावर्त में से चरमावर्त स्थिति में आ जाता है। शेष रहा आधे चरमावर्त के स्वरूप में पहचने के लिए निरंतर प्रयास करना अनिवार्य होता 50505050505050505050505000214900900505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy