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________________ TOUHUUUUUUUUUUUUUUUUUU पुरुषार्थ सबल एवं कर्म निर्बल हो जाते हैं। धर्म और धार्मिक अनुष्ठानों में जितनी अधिक आसक्ति होगी उतनी अधिक आराधना बढ़ेगी और विराधना घटेगी। (विराधना कम होगी) नियति, गणित के उदाहरण के पीछे जो उत्तर है वह उसके जैसा है; परन्तु उसका उत्तर लाने के लिए गुणाकार, भागाकार, हिसाब, उसके बाद शेष सारी रूप रेखा करनी पड़ती है। उसके लिए उसके जैसा पुरुषार्थ चाहिए। उदाहरण का उत्तर तो निश्चित है ही; किन्तु पुरुषार्थ के बिना उत्तर नहीं मिल सकता। जब तक नियति को नहीं समझ सकते तब तक पुरुषार्थ करना ही पड़ता है। भव्य - अभव्य जीव अव्यवहार राशि की निगोद से बाहर निकली हुई आत्मा की दो प्रकार से यात्रा प्रारंभ होती है - 1. गोल - चूड़ी के जैसा या खाली कुए जैसा मार्ग । गोल-गोल घूमते रहो (चक्कर लगाते रहो) उसका अंत नहीं है। __2. कुंडलिये जैसा - गोल-गोल कुंडालिये बड़े-बड़े बनाते-बनाते आखिर अंत आ जाता है। प्रथम मार्ग - घाणी के बैल जैसा - जिसमें घूमते रहो । उससे मोक्ष की प्राप्ति कभी नहीं होती। द्वितीय (दूसरा) मार्ग - मोक्ष तक पहुँचा देता है। * निगोद में से बाहर निकली हुई आत्मा दो प्रकार की होती है। 1. भव्य (मोक्ष की योग्यता वाली) 2. अभव्य (कभी मोक्ष नहीं जा सकने वाली) 500 शिष्यों के गुरु बनजाए तो भी चूड़ी जैसा गोल मार्ग में ही चक्कर लगाता रहता है। अव्यवहार राशि की निगोद के जीव एकेन्द्रिय ही होते हैं, उसके स्पर्शेन्द्रिय के अतिरिक्त अन्य इन्द्रिय नहीं होती। भवि (भव्य) जीव में मोक्ष जाने की योग्यता होती है और अभवि (अभव्य) जीव में ७050505050505050505050505050216500900505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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