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उल्लास घरमा प्रवेशतां बारणुं खोल्युं, अने केशर बरासनी सुरभि,
देहने विलेपी रही ... निरामय वितरागना सत्नी
कस्तूरी श्वासमां जाणे भीनी, भीनी,
प्रसरी गई ... प्रसन्नता धुम्मस वलग्यु, अने 'राग' नी उषमाथी, टपक्यूं शेष एक
बिन्दु ॥ आतम ने अभिषेकतुं वीतरागनी पूजाना उल्लासमां ..
'श्रद्धांध' सितम्बर 99
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