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निकल जाता है, पर वस्तु में आसक्त नहीं होना, इसकी दया मुझ पर रही, ये सिद्धांत त्यागन के बाद दुःख या सुख कुछ भी नहीं ।
(श्रीमद् राजचन्द्र)
न इच्छा हो तो भी आवे उसका नाम दुःख और न इच्छा हो तो भी चला जाय उसका नाम सुख ।
भरत चक्रवर्ती असीमित ऋद्धि समृद्धि के भोक्ता थे। पाँचों ही सुख संपूर्ण रूप से प्राप्त थे, फिर भी उनके प्रति वे निस्पृह थे । चूँकि उनके मन में यह दृढ़ निश्चय था कि - ये सुख क्षणभंगुर हैं, निःसार है । वे सदा उनको स्मृति में रहे - महल में ऐसे स्वरूप को निर्मित करवाया था । सदा उस स्वरूप को मन में समाया रखते थे और यही कारण रहा कि निस्पृह भावों का मंथन बढ़ता चला गया, एक समय ऐसा आया कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए ही केवलज्ञान प्राप्त कर मुक्ति पढ़ पा लिया, मोक्ष मार्ग के अधिकारी बन गए ।
मोक्ष कौन जा सकता है ?
* मोह को जीत ले वह मोक्ष जा सकता है ।
संख्यात वर्ष की आयुष वाले युगलिक मोक्ष नहीं जा सकते, संज्ञी, भव्य, कम से कम नव (9) वर्ष की उम्र ।
प्रथम संघयणी - वज्र ऋषभ नाराचसंघयण, ऊँचाई शरीर मान - 500 धनुष प्रमाण ।
* एक साथ कितने जीव मोक्ष जा सकते हैं ?
एक समय में 500 धनुष की देहमान वाले
2 हाथ की काया वाले
02
04
108
मध्यम अवगाहना वाले
* अंतगड़, अंतकृत केवली क्या है ?
जिनके केवलज्ञान और निर्वाण का अंतर सिर्फ 2 घड़ी का हो । उदाहरण स्वरूप
मेतारज मुनि, गजसुकुमाल, मरुदेवी माता ।
१९७९ 204
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