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________________ GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OGOGOGOGOGOG 6 द्रव्य में उत्तम से उत्तम द्रव्य जीव है और उनमें स्वयं के स्व स्वरुप को प्राप्त करने की वास्तविक चाह है, मांग है । आत्मा शाश्वत सुख की शोध में रहती है। अक्षय, अजर-अमर, अविकारी, अविनाशी ऐसा सुख उसे चाहिए। ____Perfect, Pure, Personal, Permanent, Paramount सुख की मांग है । स्व, यानि स्वयं का, जो स्वयं के अंदर है उसे निखारना अर्थात् बाहर प्रकट करना है। * अनजाने में जो याचना होती है, वह सत्य है, जायज है, भूल कहाँ होती है ? लेकिन, पुद्गल में से मिले यह संभव ही नहीं और वहाँ से प्राप्त करने के लिए हम याचना करते हैं। * जीव व्यवहार में :1. दूधपाक या श्रीखंड एक चम्मच ही मिले तो अधूरा ? सिंघाड़े के आटे का भेल किया हुआ श्रीखंड क्या अच्छा लगता है ? हलवाई बिना कल्लाई किए हुए बर्तन में दूध पाक देतो कैसा ? मेवा इलायची आदिमसाला युक्त दूधपाक ही स्वादिष्ट लगता है ना ? 2. शादी योग्य लड़के को कैसी कन्या चाहिए ? रंग, रुप और सर्वांग अक्षत कन्या चाहिए? कुँवारी एवं शुद्ध जीवन में रही हुई लड़की चाहिए। मन के अंदर विश्व सुंदरी के स्वप्न संजोए रहता है। 3. स्त्रियाँ बाजार में मटके खरीदने जाती हैं, अच्छे ठोंक बजाकर पक्का मटका देखती हैं। कहीं पानी भरते समय कच्चा हो तो फूट न जाए। इसलिए अच्छा पका हुआ देखती हैं। आंतरिक जीवन के इन सभी मौलिक स्वरूपों में चाह की छाया छाई रहती है । जीव सच्चिदानंद स्वरूप है । सत्-नित्यता, चित्त-ज्ञान, आनंदरुप, मोक्ष को न मानना, न समझना तथा परमात्मा को न मानना, न समझना, या न स्वीकारने की मांग को यदि अंदर तक खोज कर देखा जाए तो जाने-अनजाने में भी मोक्ष की मांग तो होती ही है। जीवन स्वयं जीएं और न माने उसी का नाम अज्ञान है । सुख के पहले और सुख के बाद भी दुःख ही है । सुख के साथ दुःख तो रहता ही है, ज्ञानी भगवंत ऐसा समझाते हैं। निर्दोष सुख, निर्दोष आनंद, चाहे जहां से लो, ये दिव्य शक्तिमान है, जिससे जंजीरों से GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 203 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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