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________________ २७०७090909009009009090050७०७09090090909050७०७090७०७७०७०७ मोक्ष किसलिए ? (चिन्तक - स्व. पन्नालाल जगजीवनदास गांधी) "पहला सुख ते जाते नर्या, (शरीर से स्वस्थ) बीजु धरे शीलवती भार्या, तीजु सुख कोठी मां जार, चोथु आज्ञांकित परिवार, पांचमुं सुख कलशरुप सार प्रतिष्ठावान ने आबरुदार ।” पांचे पांच सुख-दुःखना द्वार, ज्ञानी कहे मोक्ष सुख ज विचार । "श्रद्धांध" * बंधन - दुःख मुक्ति विचार : दुःख का और बंधन का अभिन्न संबंध है। दुःख होगा वहाँ बंधन होना है और बंधन होगा वहाँ दुःख अवश्यंभावी है। दुःख का समूल विनाश अर्थात् वहाँ मोक्ष मुक्ति प्राप्ति। सबसे बड़ा बंधन स्वयं के निकट ही है । यानि शरीर । शरीर को खिलाना, पिलाना, पहनाना (वस्त्र आभूषणों से सजाना) संवारना और अंत में उसे छोड़कर जाना । छोड़ना पड़ता है तब मृत्यु का दुःख । यदि शरीर को मुक्ति प्राप्ति का साधन बनाना है तो योग धारण करो, अन्यथा भोग विलास का साधन बना है तो आत्मा का भोग । अर्थात् दुःख को निमंत्रण। * प्राप्त सुख और इच्छित सुख विचार : दुःख विकृति है, इसको कोई चाहता नहीं । सुख जीवन का ही एक स्वरुप है । जीव की ७०७७०७0000000000020100505050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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