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(उवज्जए वा, विगमए वा, धुवए वा) रुप भी त्रिपदी कही है। * उपन्नेईवा - अर्थ - जीव से जीव उत्पन्न होता है, नर नारी से गर्भ उत्पन्न होता है। शरीर
से नाखुन आदि उत्पन्न होते हैं, अजीव से अजीव उत्पन्न होते हैं, ईंट आदि के चूर्ण के समान, अजीव से जीव उत्पन्न होता है - पसीने से लूं की उत्पत्ति की तरह । (जीव से
जीव, जीव से अजीव, अजीव से अजीव और अजीव से जीव उत्पन्न होता है) * विग्गमेईवा :-विगम - नाश होना, इसमें भी 4भाग हैं
1. जीव से जीव नष्ट होता है 2. जीव से अजीव नष्ट होता है 3. अजीव से जीव नष्ट होता है 4. अजीव से अजीव नष्ट होता है 1. जीव 6 काय (पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय) जीवों की उपमर्दना करते हैं। 2. जीव घड़ा (मिट्टी का) आदि अजीव पदार्थों का नाश करती है। 3. तलवार या जहर आदि से जीव मृत्यु प्राप्त करते हैं।
4. घड़ा पत्थर से टकरा जाए तो नष्ट हो जाता है। * धुवेईवा :- ध्रुवता में भी 1. नित्य, 2. अछेद्य, 3. अभेद्य आदि जीव के स्वरुप को
जानना । दा.त. आत्मा नित्य है, अभेद्य है, अछेद्य है । सूक्ष्म, निगोद, नित्य, अभेद्य, अछेद्य है । भूत, भविष्य, वर्तमान की अपेक्षा से लोकनित्य है । (काल की अपेक्षा से अनित्य) द्रव्य रुप में जीव शाश्वत तिर्यंच, मनुष्य नारकी देव रुप पर्याय अशाश्वत है।
शरीर के अंदर पांच वायु घूमते हैं :- प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान । हेमचंद्राचार्य सूरि इन पांच वायु को रोक सकते थे और इससे वे आसन से कुछ ऊँचे (अधर में) रहकर व्याख्यान दे सकते थे। __सिंह बलशाली है हाथी और सुअर का मांस खाता है । फिर भी साल में एक बार काम क्रीड़ा करता है और कबूतर कंकर और ज्वर के कण खाते हैं फिर भी हमेशा कामी ही रहता है, तो अब इसका क्या कारण ?
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