SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OGOGOGOGOGOG वलय पड़ते हों, वाणी हंस के जैसी मधुर, वेष सुंदर, शुद्ध और कोमल भाषा, अल्प भोजी (कम खाना), मर्यादा और लज्जाशील और श्वेत पुष्प जैसे वस्त्र जिसको अधिक प्रिय हो। 2. हस्तिनी :- हाथी जैसी गजगति की चाल वाली मंद मुस्कान, मर्यादाशील आदि 3. चित्रिणी :- काम मंदिर (गुप्तभाग) गोलाकार, उसका द्वार कोमल और अंदर से जल से आर्द्र, उस पर रोम अधिक हो, दृष्टि चपल, बाह्य संभोग में अधिक आसक्त (हास्य क्रिडामय), मधुर वचनी, नई-नई वस्तुएँ उसको रुचती है। 4.शंखिनी :- कर्कश स्वभाव वाली, नित्य क्लेशकारी, अशांत वातावरण को बढ़ावा देने वाली, उसके स्वभाव से कोई उससे बोलना पसंद न करे आदि। हे कमल ! स्त्रियों के कौन-कौन से अंग में किस किस दिन काम रहता है सुन । पांव का अंगूठा, पांव के फण, पांव का मणका, जान, जंघा, नाभि, वक्षस्थल (स्तन), कक्षा (बगल), कंठ, गाल, दांत, ओष्ठ, नेत्र, कपाल और मस्तक 15 अंगों में 15 तिथियाँ अनुक्रम से काम करती हैं। शुक्ल पक्ष की पड़वा को अंगूठे में काम होता है वहाँ से चढ़ता हुआ पूनम को मस्तक तक आता है । कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा (एकम) को मस्तक से होता है और पुनः उतरता हुआ अमावस के दिन अंगूठे में आता है । इस प्रकार स्त्री के काम युक्त स्थल पर मर्दन करे तो वह स्त्री तत्काल वश होती है। वश होना चाहती स्त्री अपने नेत्रों को झुकाती है। पुरुष के हृदय पर सिर रखती है एवं भौंहे टेढी करके चेहरे की शोभा बढ़ाती है और संयोग होने पर लज्जा का त्याग कर देती है। कमल को इन बातों में आनंद आने लगा तो वह हमेशा आचार्य महाराज के पास जाने लगा। क्रमश: इन बातों के बीच-बीच में ज्ञान-चर्चा भी होने लगी और धीरे-धीरे उसने नियम लेना प्रारंभ किया तथा व्रतधारी बन गया। 363 पाखंडी (पाखंडी संग वर्जन रुप समकित की चौथी श्रद्धा) ऐकांत क्रियावादी 180 भेद, अक्रियावादी के 84 भेद, अज्ञान वादि के 67 भेद और विनयवादि के 32 भेद, इस प्रकार कुल - 180+84+67+32=363 भेद होते हैं। त्रिपदी भगवान ने गौतम (इन्द्रभूति) को त्रिपदी दी थी : 1. उपन्नेई वा-उत्पन्न होना, विग्गमेइवा=विनाश होना, (कायम) धुवेइवा ध्रुव रहना। 9@GO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 195 99@GOG@GOG@GOOGOGOGOGOGOGO
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy