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________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG सिंहो बली द्विश्य सूकर मांस भोजी, संवत्सरेण रतिमेति किलकवारम् । पारापत: खर शिला कण मात्र भोजी, कामी भवत्यनुदिनं नननुं कोङत्र हेतुः ॥ पद्मासन प्रभु पूजन करने के बाद सात्विक भावना से या उत्तम साहचर्य (सहयोगी) से आत्म कल्याण के लिए जीव तैयार होता है, तब माला गिनते समय, ध्यान करते समय, कायोत्सर्ग करते समय या स्वाध्याय करते समय कमर झुकरने न देना-रीढ़ की हड्डी को सीधे रखकर पद्मासन में बैठना, जिससे वीर्यनाड़ी का संघर्ष आसन के साथ नहीं होगा। वीर्यनाड़ी अत्यन्त नाजुक होती है; लिंग (जननेन्द्रिय) के नीचे और गुदा के ऊपर की नस है जिसे वीर्य नाड़ी कहते हैं । आत्मकल्याण के लिए वीरासन में बैठने का प्रयत्न करना चाहिए। जिसे कायक्लेश का अनुष्ठान कहते हैं । काया की माया को तोड़ने के लिए बाह्यतप में कायक्लेश तप की आवश्यकता समझना चाहिए। औपपातिक सूत्र में उत्कट आसन, वीरासन, पद्मासन, अर्ध पद्मासन आदि आसन में बैठना ऐसा सूचित किया गया है। पांव के पंजे पर बैठना, जहाँ दोनों कूल्हे (नितंब) एड़ी से ऊपर रहे। काय क्लेश काया की माया को तोड़ने का तप है। इच्छितवस्तु की प्राप्ति, मनुष्यों की प्राप्ति के मूल में पूर्व भव का पुण्य और अनिच्छित वस्तु, व्यक्तियों की प्राप्ति होना उसमें पूर्व भव के पाप कर्म का प्रभाव है । इसलिए उस पुण्य को बढ़ाने के लिए देव, गुरु, धर्म का आराधन और पाप से मुक्त होने के लिए तप, जप, ध्यान, दान, पुण्य आदि सत्कर्म करने के अतिरिक्त पुण्य स्थिर नहीं रहता और पाप का नाश नहीं होता। मोक्ष की सीढ़ियाँ मनुष्य जन्म, आर्य देश, उत्तम कुल, श्रद्धा, गुरु के वचनों का श्रवण और कृत्यअकृत्य का विचार। जैसे - मनुष्य नेत्र होने के बाद भी सूर्य के प्रकाश को बिना नहीं देख सकता, उसी प्रकार ज्ञानयुक्त जीव होते हुए भी चारित्र के बिना मोक्ष सुख को नहीं देख सकता । इसलिए चारित्र में स्थिर होने की आज्ञा है। सर्व विरति - यही धर्म है ....। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 19790GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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