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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® अनेकानन्तवाद :- सारभूत मर्मग्राही सिद्धांत है प. पू. गणिवर्य श्री युगभूषणविजयजी म.सा. प्रभु महावीर की वाणी का सर्वस्व, सार का भी सार, तत्व का भी तत्व, सभी का जो दोहन होता है, वह अनेकान्तवाद है । संपूर्ण जैन शासन की विशेषता इसी पर आधारित है। वाक्य के अर्थ को सच्ची अपेक्षा से जोड़ दो तो सच्चा अर्थ समझ में आ जाए, इसी का नाम अनेकान्तवाद! हमने प्रभु महावीर उनके सिद्धांत और तथ्यों को पहचाना नहीं । सिर्फ Packing लेकर धूम रहे हैं । जैन धर्म लेकर घूम रहे हैं किन्तु उसका वास्तविक परिचय तो है नहीं। एकांत व्यवहार नय नहीं है । एकान्त से निश्चय नय भी नहीं । दोनों को एक साथ पकड़ना है तो ही उद्धार होगा। आश्रव तत्व को एकांत विचार से हेय कहा है। ऐसा क्यों ? किसी ने प्रश्न किया : नीची कक्षा (भूमिका में) में अमुक आश्रव उपादेय भी है, जैसे कि - तीर्थंकर नाम कर्म - एकान्त से आश्रव को हेय कहने वाले एकांतवादी हैं। व्यवहार नय :- प्रथम गुणस्थान से आध्यात्म मानते हैं। निश्चय नय :- पांचवे गुणस्थान से आध्यात्म मानते हैं । समकित बीच गुणस्थान में आता है। योग 5वीं दृष्टि से सम्यक्त्व आता है। नमुत्थुणं सूत्र की पांचवी गाथा प्रथम पद अभयदयाणं योग की प्रथम दृष्टि मित्रा दूसरा पद चक्खुदयाणं योग की द्वितीय दृष्टि तारा दूसरा पद मग्गदयाणं योग की तृतीय दृष्टि बला चौथा पद शरणदयाणं योग की चतुर्थ दृष्टि दिप्ता पांचवा पद बोहिदयाणं योग की पंचम दृष्टि स्थिरा छठा पद धम्मदयाणं योग की षष्ठम दृष्टि कांता योग की सप्तम-अष्टम दृष्टि प्रभा-परा 5090505090909009050509050018409009050509090509090909050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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