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________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©GOGOG अनेकान्त = अन् (निषेध = नहीं), + एक + अन्त (पूर्णता) एक से पूर्णता नहीं वह अनेकान्त। हाथी बलवान है परंतु सिंह के सम्मुख निबल । अपेक्षा से हाथी, गाय-बेल के सामने बलवान किन्तु सिंह के सामने एकदम चूहे जैसा । संस्कृत के प्रोफेसर विद्वान होते हैं परन्तु खेती के विषय में उनसे प्रश्न पूछा जाए तो अपेक्षा से प्रोफेसर बुद्धिमान पर इस अपेक्षा से बुलू। इसलिए अनेकान्तवाद को स्याद्वाद (अपेक्षावाद) भी कहते हैं । अपेक्षा अर्थात् नय अनेक धर्मों में से कोई एक धर्म का बोध हो उसे नय और जिसे परस्पर विरोधी दिखते अनेक धर्मों का बोध हो उसे अनेकान्तवाद। अनेकान्तवाद महल का नय उसके पाये हैं । नय के उपर ही अनेकान्तवाद रचित हुआ। अनेकान्तवाद साध्य है, नय उसका साधन है। जितनी अपेक्षाएं उतने नय, अपेक्षाएं अनंत हैं तो नय भी अनंत हैं । संक्षिप्त करके महापुरुषों ने सभी नयों को सात नयों में सीमित कर दिए। 1. नैगम - गम दृष्टि, ज्ञान, विशाल दृष्टि सामान्य और विशेष दोनों को Include करें। 2. संग्रह - सभी विशेष धर्मों को एकरुप, सामान्यरुप में देखने की दृष्टि। 3. व्यवहार - विशेष के बिना सामान्य से व्यवहार नहीं चलता । मानते हैं; वनस्पति को लाओ कहने से नहीं चलता, नीम को लाओ कहना पड़ता है। 4. ऋजुसूत्र - केवल वर्तमान अवस्था को लक्ष्य में रखें। 5. संप्रत - शब्द - शब्द आश्रयी विचारधारा । 6. समभिरुढ - एक शब्द अनेक अर्थ निकलते हैं । जैसे नृप - रक्षण करने वाला । राजा - राज चिन्ह धारण करने वाला, भूप - पृथ्वी का पालन करने वाला। 7. एवंभूत - वर्तमान में जो गाता है उसे ही गायक कहते हैं । व्युत्पत्ति सिद्ध भेद से जो अर्थ करे वह नय है। ७०७७०७0000000000018390090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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