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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©G निश्चय नय, समकित के बाद सत्य धर्म मानता है । समकित केवल धर्म की श्रद्धा बढ़ाता है वैसा मानता है । व्यवहार नय प्रथम गुण स्थान से आध्यात्म को मानता है। हरिभद्रसूरि :- जिन शासन को मिली हुई अमूल्य भेंट : साध्वीजी 'याकिनी महत्तरा' रात्रि के समय स्वाध्याय कर रहे थे। रात्रि को प्रथम प्रहर में हरिभद्र राजपुरोहित को राजमार्ग से जाते हुए श्लोक सुनने में आया । खड़े रह गए। कुछ देर सुनने के बाद साध्वीजी के पास गए और बोले कि मुझे इस श्लोक का अर्थ समझाओ, मैं आपका शिष्य बन जाऊँगा । साध्वीजी ने सोचा मैं न बताकर गुरुवर के पास भेज दूं। उन्होंने कहा पास में उपाश्रय में गुरु महाराज हैं वहां चले जाओ। गुरु महाराज ने देखा कि ऐसे व्यक्ति जिनशासन को मिले तो दोनों का काम हो जाए । भविष्य में जिन का लाभ जानकर उनसे कहा - जैन दीक्षा लेने पर ही इसका अर्थ समझा जा सकेगा। तैयार हो गए । दीक्षा ले ली। और इस प्रकार जिन शासन को 14 पूर्वी हरिभद्रसूरि प्राप्त हुए। ऐसा बताते हैं - हरिभद्रसूरि ने अंत में यह कहा कि “यदि हमको ये शास्त्र, सिद्धान्त नहीं मिलते तो हमारा क्या होता?" वे अनेकान्त रहित शास्त्र निरर्थक मानते हैं। अनेकान्तयुक्त शास्त्र से हम सनाथ हैं । ऐसा मानते निश्चय नय को प्रथम पकड़ने का नहीं, उसको प्रारंभ में हृदय में ही रखना है। उपादान मुख्य या निमित्त ? निश्चय नय कहता है उपदान मुख्य है । निमित्त तो ठीक है । अनंत बार हम समवसरण में गए, शासन पाया, धर्म प्राप्त किया किन्तु क्या हुआ ? परंतु विचार करना :- वीतरागी संयम प्राप्त किए बिना कोई जीव निमित्त के बिना आगे नहीं बढ़ सकता । तीर्थंकरों को भी अगले तीन भव सरागी संयम की साधना है । वे जन्म जन्मांतर के साधक हैं। अभी तो निमित्त से अन्यदशा के मार्ग की भूमिका उच्छेद ही है । ज्ञाता दृष्टा भाव का वर्तमान में उच्छेद (छेदन) है। इसलिए 24 घंटे अपने को निमित्त की आवश्यकता है। 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO 185 999@GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGO
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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