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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OG * दृढ़ प्रहारी का उत्तम चिंतन :- UltraPositive thinking... 1. जैसा कर्म करे वैसा फल मिले। 2. एकदम निर्दय बनकर मेरे ऊपर जो आक्रोश कर रहा है उससे मेरी तो बिना प्रयास के 'निर्जरा' हो रही है। 3. मनुष्यों को आक्रोश का आनंद आ रहा है वैसे मुझे भी निर्जरा रुप आनंद आ रहा है। 4. संसार में सुख दुर्लभ है । लोगों को क्रोध से बकवास करके आनंद आता है । उसमें मैं निमित्त बन रहा हूँ उनके सुख का निमित्त मेरा भाग्य बन रहा है। 5. उनके द्वारा मुझे मारना, मेरे कर्म को मार पड़ रही है, जिससे वे कर्म दूर होंगे। मुझे मार ___रहे हैं, सहन करने से ही मेरे कर्म क्षय होंगे। 6. जो अपने पुण्य का व्यय करके मेरे पापों को दूर कर रहे हैं इनके जैसा प्रिय बंधु कौन होगा? 7. मेरे ऊपर उपद्रव करने वाले ने मेरा तिरस्कार ताड़ना - तर्जना की है । मुझे मारा तो नहीं? मुझे मारने वालों ने मुझे मार से ही मारा है - पूरा तो नहीं मार डाला, जिन्होंने मारने का प्रयत्न किया तो उन्होंने मेरा धर्म तो नहीं लिया ना ? इसलिए उन्होंने मेरी दया ही की है तो वे मेरे सच्चे बंधु जैसे हितैषी हैं। याद रखें - कल्याण अनेक विघ्नों और अवरोधों से घिरा हुआ है । दुष्कृत्यों की निंदा - घृणा (ग) में महर्षि दृढ़ प्रहारी ने अपने संचित कर्मों को पूर्णत: जला दिए और दुर्लभ केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष चले गए। किंचित आध्यात्म पूर्ण विचार :* राग व द्वेष वस्तु में नहीं, मन में है। * अनुकूलता का राग छोड़ो और प्रतिकूलता का द्वेष छोड़ो । प्रभु महावीर ने परिषह सहन किए तो इसका रहस्य, इसका मतलब समझने योग्य है। * आर्त्तध्यान के निमित्तों से नहीं किन्तु इसके चिंतन से दूर रहो । नापसंद - व्यक्ति या 50@G©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 180 90GOG©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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